प्रांतीय वॉच

मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से घट रहा उत्पादन

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नवागढ़ बेमेतरा संजय महिलांग

फसल उत्पादन के लिए मिट्टी में पाए जाने वाले नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर, जिंक और बोरान की सहित अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरत होती हैं। रसायन युक्त खाद की अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से कमी आ गई है। कृषि विशेषज्ञों ने भी इस बात को माना है कि इससे धरती की उर्वरा शक्ति तो प्रभावित हो ही रही है, फसलों की उत्पादकता पर भी व्यापक असर पड़ रहा है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो मिट्टी की अच्छी सेहत के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसमें से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्राकृतिक वातावरण और पानी से मिलते हैं। जबकि नाइट्रोजन, पोटाश,सल्फर,जिंक, बोरान, कैल्शियम, मैग्नीशियम,सल्फर, जिंक,आयरन,मैगनीज,कॉपर और क्लोरीन आदि अन्य स्रोतों से पूरे किए जाते हैं। भारत के आजादी के बाद से किसान 11 गुना अधिक रसायनीक उर्वरकों का प्रयोग करने लगे पड़े हैं। वर्ष 1969 में एक हेक्टेयर भूमि में 12.4 किलोग्राम खाद का प्रयोग होता था, लेकिन अब 137 किलोग्राम हेक्टेयर तक पहुंच गया है। वहीं इसके साथ कीटनाशकों की खपत भी हर वर्ष बढ़ रही है। करीब 85 प्रतिशत मिट्टी में जैविक कार्बन (देसी खाद) की कमी है। इसके अलावा मिट्टी में सक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी है, अधिक मिट्टी बोरान, आयरन, सल्फर और जिंक की कमी देखी जा रही है।

पोषक तत्व की कमी से फसलों में लग रहे रोग

मृदा परीक्षण में साल दर साल पोषक तत्वों की कमी दर्ज की जा रही है। यह कमी जीवांश कार्बन, सल्फर और जिंक सूक्ष्म पोषक तत्व में पाई जा रही है। जिंक की कमी से धान, गेहूं, आलू, मक्का, गोभी,आदि फसलों को झुलसा और खैरा रोग लग जाता है। जिंक, आयरन, कॉपर, मैग्नीज, बोरान, क्लोरीन की फसल और पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बोरान की कमी होने पर धान और गेहूं की फसल में बालियां तो लग जाती हैं, लेकिन इसमें दाने नहीं पड़ते हैं। पोषक तत्वों की कमी फसल चक्र न अपनाना, गोबर, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग में कमी सहित मुख्य कारण मृदा परीक्षण करवाए बिना अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल करना पाया जा रहा है।

मिट्टी जांच कराने के बाद लगाए फसल

युवा किसान किशोर कुमार राजपूत ने किसानों से अपील किया है कि *मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी चिंता का विषय है। इससे निपटने के लिए उद्यानिकी,वानिकी, पारंपरिक नई फसल लगाने से एक माह पहले मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। परीक्षण के बाद रिपोर्ट मिलने पर किसानों को गौ आधारित प्राकृतिक जैविक खाद,वर्मी कंपोस्ट,नाडेप कंपोस्ट, गौ मूत्र आदि के इस्तेमाल के लिए प्रेरित भी किया जाएगा। फसल चक्र अपनाकर भी मिट्टी को सुधारा जा सकता है।*

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