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सवर्णों को मिलने वाले EWS आरक्षण पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला, जारी रहेगा EWS कोटा, 4-1 से सुनाया फैसला

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NEW DELHI.: सुप्रीम कोर्ट सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। चीफ जस्टिस यूयू ललित की 5 सदस्यीय बेंच में से तीन जजों ने 4-1 से आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया।

जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कोटा के खिलाफ अपनी राय रखी। बाकी चार जजों ने संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संशोधन संविधान के मूल भावना के खिलाफ नहीं है।  EWS कोटे में सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आर्थिक आधार पर मिला हुआ है आरक्षण। इस फैसले को दी गयी थी चुनौती। शीर्ष अदालत ने आरक्षण पर रोक लगाने से किया था इनकार। चीफ जस्टिस का आज आखिरी वर्किंग डे भी है।

जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS कोटे पर अलग रुख अपनाया है। जस्टिस भट्ट ने कहा कि संविधान सामाजिक न्याय के साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देता है। EWS कोटा संविधान के आधारभूत ढांचा के तहत ठीक नहीं है। जस्टिस भट्ट ने कहा ये आरक्षण का लिमिट पार करना बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है।

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि EWS कोटा सही है। इसके साथ ही EWS कोटा को सुप्रीम कोर्ट की लगी मुहर। मैं जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले के साथ हूं। उन्होंने अपने फैसले में कहाकि मैं EWS संशोधन का सही ठहराता हूं। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि हालांकि EWS कोटा को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का 103वां संशोधन सही है। एससी, एसटी और ओबीसी को तो पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है। इसलिए EWS आरक्षण को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकार ने 10 फीसदी अलग से आरक्षण दिया। EWS कोटा के खिलाफ जो याचिकाएं थी, वो विफल रहीं।

जस्टिस माहेश्वरी की फैसला- हमने समानता का ख्याल रखा है। क्या आर्थिक कोटा आर्थिक आरक्षण देने का एकमात्र आधार हो सकता है। आर्थिक आधार पर कोटा संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है।

5 जजों की बेंच ने सुनाया फैसला

चीफ जस्टिस ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यह फैसला सुनाया। चार जजों ने अलग-अलग फैसला पढ़ा। चीफ जस्टिस ललित ने कहा कि चार फैसले पढ़ने जा रहे हैं।

क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट आज 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा। इसमें प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है। पीठ ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला हैं। मामले में मैराथन सुनवाई लगभग सात दिनों तक चली। इसमें याचिकाकर्ताओं और (तत्कालीन) अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडब्ल्यूएस कोटे का बचाव किया।

याचिका में क्‍या द‍िए गए हैं तर्क?

इससे पहले गोपाल ने तर्क दिया था कि 103वां संविधान संशोधन के साथ धोखा है। जमीनी हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संशोधन सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला है। उनके राज्य में, जो केरल है, उन्हें यह कहते हुए खुशी नहीं है कि सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए एक आदेश जारी किया और शीर्षक जाति था और वह सभी देश की सबसे विशेषाधिकार प्राप्त जातियां थी

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