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किसी से तुरंत प्रभावित मत होना,जो अप्रभावित रहेगा वही धर्म का पालन कर पाएगा : आचार्य विशुद्ध सागर

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रायपुर। ज्ञानियों प्रभावित होने से कभी धर्म का पालन नहीं हो सकता है,जो अप्रभावित रहेगा, वही धर्म का पालन कर सकता है,इसलिए किसी से भी तुरंत प्रभावित नहीं होना। यह संदेश आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शुक्रवार को फाफ़ाडीह में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में दिया। आचार्यश्री ने कहा कि मित्रों जानों इस रहस्य को,आप खाना लेकर दुकान जाते ही होंगे, कभी न कभी अपने पिताजी के लिए भी दुकान पर खाना लेकर गए होंगे,आप उस दिन भी भोजन लेकर गए थे जिस दिन रिमझिम रिमझिम बारिश गिर रही थी,लेकिन टिफिन बंद था,पानी की बूंदे टिफिन पर गिरी थी पर भीतर रखी खीर पूड़ी को कुछ नहीं हुआ। मित्रों जब सीलबंद टिफिन में पानी की बूंदे कुछ नहीं कर सकी, ऐसे आप चाहो पश्चिमबंगाल जाओ या अमेरिका जाओ, जैसे पैक टिफिन में पानी प्रवेश नहीं कर सका, ऐसे आप अप्रभावित रहना,अपना भी ढक्कन बंद करके रखना,चाहे आप देश में जाओ या विदेश में जाओ, धर्म कमाने जाना, धर्म बेचने नहीं जाना।
आचार्यश्री ने कहा कि विज्ञान धर्म हो न हो लेकिन धर्म विज्ञान है। विज्ञान मात्र विज्ञान है परंतु धर्म वीतराग विज्ञान है। इस वीतराग विज्ञान को जिसने समझ लिया, उस जीव ने विश्व को समझ लिया। अज्ञ प्राणी जीवन जीने के लिए बहुत कुछ करते हैं कि मेरा जीवन सुखमय हो परंतु विज्ञ प्राणी धर्म करने के लिए जीता है, जीवन अपने आप सुखमय हो जाता है। सुखमय जीवन जीने के लिए आपने अज्ञान का आश्रय लिया है तो संक्लेषता को प्राप्त हुए और सुखमय जीवन जीने के लिए आपने विज्ञान का आश्रय लिया है,विश्वास मानिए क्लेष से पूरित होंगे। मित्रों यदि आपने सुखमय जीवन जीने के लिए धर्म का आश्रय लिया है तो परम सुखी हो जाओगे।

आचार्यश्री ने कहा कि लोग कहते हैं मैं निरोग रहूं,स्वस्थ रहूं,विज्ञान कह रहा है गर्म पानी पियो। मित्रों विज्ञान जो कह रहा है वह मात्र शरीर को स्वस्थ करने के लिए गर्म पानी पिला रहा है, पर क्रूरता से भरा हुआ है। ज्ञानियों धर्म कहेगा जीवों की रक्षा करो, पानी को छानकर, बिलछानी कुंए में डालकर,प्रासुक करके पानी का प्रयोग करो,जीवों की रक्षा होगी। जब आप नाना जीवों की रक्षा करोगे,उसमें आप भी एक जीव हो। अप्रासुक बगैर छना पानी पियोगे तो शरीर में रोग होंगे, आपकी मृत्यु हो जाएगी,आप अन्य जीवों के हत्यारे हो जाओगे और स्वयं के भी हत्यारे हो जाओगे।

आचार्यश्री ने कहा कि आपके आश्रित जो कुटुंब के लोग जीने वाले थे,उनको तुम बिछोह करके चले गए,छोटे-छोटे आपके बच्चे थे,वे पिता व माता के अभाव में बिलखेंगे। इतना ही नहीं किया आप एक ज्ञानी जीव थे,बलिष्ठ थे, समाज के मुखिया थे,आपने समाज का भी अहित कर दिया, कदाचित आप बदल जाते तो धर्मात्मा बन जाते, लेकिन आपने धर्मात्मा का भी अहित कर दिया। इसलिए जो कार्य विज्ञान बोल रहा है,उसकी अपेक्षा से करोगे तो पाप का बंध होगा और जो कार्य धर्म बोल रहा है उसकी अपेक्षा से करोगे तो आपका शरीर भी स्वस्थ रहेगा और आत्मा भी स्वस्थ रहेगी।
आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञानियों मात्र दृष्टि बदलना है,सोच बदलनी है,वही क्रिया आप कर रहे हो, भोजन तो करते हो न ? भूखा तो कोई नहीं रहता है। मर्यादित भोजन घर में बनने लग जाए तो आपको कभी मुनिराजों के लिए चौका नहीं लगाना पड़ेगा। चौका लगेगा लेकिन कभी यह नहीं कहना पड़ेगा कि चौका खाली गया,क्योंकि आप अपने लिए शुद्ध बना रहे हैं तो साधुओं का पड़गाहन भी करेंगे ही। शोक और क्लेष आपको इसलिए होता है, क्योंकि आप शुद्ध नहीं खाते हो, यदि शुद्ध खाओगे तो समाज में कीमत बढ़ेगी,शरीर स्वस्थ रहेगा, लोग धर्मात्मा कहेंगे,बुद्धि का विकास होगा,जो चिंतन कभी नहीं करते थे,अब उत्कृष्ट चिंतन आपके पास होगा।

आचार्यश्री ने कहा कि अब आप सवाल करते हो कि किसी से प्रभावित नहीं होंगे तो विकास कैसे करेंगे। मित्रों आप तो एक चींटी को भी देखकर चलते हो,ताकि जीव हत्या न हो, आपके दादा ने सिखाया है कि किसी को सताना नहीं। आपके आसपास संसार में ऐसे लोग भी हैं जो मांसाहार कर रहे हैं, उस क्षण ध्यान रखना कि भूत के पुण्य से कभी प्रभावित मत हो जाना, आप अप्रभावित रहना। किसी से प्रभावित होना तो उनके पद व प्रतिष्ठा पर ध्यान देना लेकिन उनके भोजन पर ध्यान मत देना।
आचार्यश्री ने कहा कि रायपुर में एक माँ ऐसी जगह सर्विस कर रही है,जहां उसको बच्चों को भोजन देना पड़ता है। एक दिन अधिकारियों ने कहा कि आप पहले भोजन खाओगे फिर बच्चों बच्चों को देंगे। उस मां ने कहा कि मैं नहीं खाऊंगी,तो उसे कहा गया कि आप पूरे बच्चों के अधिकारी हो,तो उस मां ने कहा हां मैं अधिकारी अवश्य हूं लेकिन धर्म मेरा अधिकारी है। तब अधिकारियों ने उससे कहा आपको खाना ही पड़ेगा,उस मां ने कहा कि यहां अभक्ष भी बनता है, हम जैन हैं, मैं सर्विस छोड़ने को तैयार हूं लेकिन भोजन नहीं करूंगी। तब कार्य की योग्यता देखकर उन अधिकारियों को बदलना पड़ा,बोले ठीक है आप दूसरे को खिला देना परंतु आपका धर्म बोलता है तो मत खाना।

मजाक करें सोच समझकर अन्यथा मुसीबत में कोई आप पर विश्वास नहीं करेगा : मुनिश्री निर्मोह सागर जी
मुनिश्री निर्मोह सागर जी ने कहा कि जैसे धनुष से निकला तीर कभी वापस नहीं आता,वैसे ही मुख से निकली वाणी कभी मुख में वापस नहीं आती, ऐसे ही किसी का विश्वास ढल जाए तो कभी वापस नहीं आता। बंधुओं आपने गडरिया की कहानी सुनी ही होगी,वह हमेशा मजाक में चिल्लाता था शेर आया-शेर आया लोग भागते आते थे लेकिन कोई शेर नहीं रहता था। बार-बार ऐसा होने से उसके मजाक के कारण लोगों का गड़रिये पर से विश्वास उठ गया। एक दिन सही में शेर आ गया और उसकी बकरी व भेड़ को खा गया,गडरिया चिल्लाता रहा लेकिन कोई नहीं आया,इसलिए मजाक करके किसी को परेशान मत करना, आफत के समय वही मजाक आप पर भारी पड़ेगा। कोई भी आफत के समय आप पर विश्वास नहीं करेगा। जिस प्रकार गेहूं जल जाने के बाद पुनः अंकुरित नहीं होता,पुनः गेहूं नहीं बनता,इसी प्रकार बंधुओं एक बार जो भगवान बनकर संसार से चले गए वो संसार में वापस नहीं आते हैं।

मुनिश्री निर्मोह सागर जी महाराज के णमोकार महामंत्र के व्रत पूर्ण
विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी व महामंत्री राकेश बाकलीवाल ने बताया कि
मुनिश्री निर्मोह सागर जी महाराज के णमोकार महामंत्र के व्रत पूर्ण हुए। जैन धर्म में णमोकार महामंत्र के व्रतों का बड़ा ही महत्व है। सकल दिगम्बर जैन समाज रायपुर ने मुनिश्री के व्रत पूर्ण होने पर उनकी तपस्या की खूब अनुमोदना की है।
इसी तरह आज शुक्रवार को परम पूज्य चर्या शिरोमणी आचार्य गुरुवर 108 श्री विशुद्ध सागरजी महाराज का पड़गाहन कर आहार कराने का परम सौभाग्य फाफाडीह रायपुर निवासी बाकलीवाल परिवार को प्राप्त हुआ। दिगम्बर जैन समाज ने महावीरप्रसादजी, राजकुमार-कुसुमजी, जितेंदकुमार-सुनीताजी, राकेशकुमार-रीनाजी, नरेन्द्रकुमार-अमिताजी बाकलीवाल परिवार के पुण्य की अनुमोदना कर बहुत बहुत बधाई दी।

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