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रमन सरकार ने आरक्षण मामले कोर्ट में जानबूझ कर लापरवाही बरता था- मोहन मरकाम

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रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कोण्डागांव में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुये कहा कि पूर्ववर्ती रमन सरकार के लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में आरक्षण रद्द हुआ। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के 58 प्रतिशत आरक्षण को बिलासपुर उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये जाने का फैसला आया।

भाजपा की लापरवाही के कारण आरक्षण के खिलाफ फैसला आया। रमन सरकार ने अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया था। कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर किया है। हम आदिवासी समाज की लड़ाई लड़ेंगे।
उनकी सरकार की लापरवाही, अकर्मण्यता और गैर जिम्मेदाराना रवैये का नतीजा यह फैसला है। रमन सरकार ने 2011 में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। 2012 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी।

सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों जिसमें इंदिरा साहनी का फैसला प्रमुख के अनुसार कोई भी राज्य सरकार यदि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण करती है तो अत्यंत विशेष परिस्थितियों, विचार एवं तथ्यों के साथ कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा। इसका भी ख्याल नहीं किया गया।
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को बढ़ाने के तमाम तर्कसंगत कारण और विशेष परिस्थितियां है लेकिन भारतीय जनता पार्टी और रमन सरकार की नीयत में खोट थी। उन्होंने अदालत में राज्य की 95 प्रतिशत आबादी के हक में तर्क नहीं दिया और जनता को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

जब आरक्षण को बढ़ाने का निर्णय हुआ उसी समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को अदालत के सामने आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की विशेष परिस्थितियों और कारण को बताना था।
तत्कालीन रमन सरकार अपने इस दायित्व का सही ढंग से निर्वहन नहीं कर पायी। 2012 में बिलासपुर उच्च न्यायालय में 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हुई तब भी रमन सरकार ने सही ढंग से उन विशेष कारणों को प्रस्तुत नहीं किया जिसके कारण राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया गया।

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