00 हाईकोर्ट नैनीताल ने सरकारी नौकरियों में उत्तराखंड मूल की महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण पर लगाई रोक
देहरादून/रायपुर। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में उत्तराखंड मूल की महिला उम्मीदवारों को उत्तराखंड संयुक्त सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के राज्य सरकार के 24 जुलाई 2006 के आदेश पर रोक लगा दी है। यहा राज्य लोक सेवा आयोग की वरिष्ठ सेवा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली की अधिवक्ता व छत्तीसगढ़ राजधानी की बेटी सुगंधा जैन ने पैरवी की और बड़ी कानूनी जीत हासिल कर छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरएस खुल्बे की खंडपीठ ने बुधवार को हरियाणा की पवित्रा चौहान और 15 अन्य की याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने अक्टूबर में होने वाली मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए अंतरिम अनुमति मांगी थी, जिसका आयोग के वकील ने कड़ा विरोध किया लेकिन अदालत ने याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी। याचिकाकर्ताओं के अनुसार विभिन्न विभागों में दो सौ से अधिक पदों के लिए प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम 26 मई 2022 को आया था। परीक्षा में अनारक्षित वर्ग की दो कट ऑफ सूची निकाली गई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली की अधिवक्ता सुगंधा जैन ने पैरवी की सुगंधा जैन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार कोई भी राज्य आवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकता, यह अधिकार केवल संसद के पास है। राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर लोगों और पिछड़े वर्गों को आरक्षण दे सकता है। एडवोकेट सुगंधा जैन ने बताया, उत्तराखण्ड मूल की महिला उम्मीदवारों के लिए कट-ऑफ 79 प्रतिशत थी, जबकि याचिकाकर्ता महिलाओं को 79 प्रतिशत से ऊपर स्कोर करने के बावजूद अयोग्य घोषित किया गया था। क्योंकि 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के जनादेश के अनुसार, 30 उत्तराखंड मूल की महिलाओं को प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है। हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 24 जुलाई 2006 को जारी सरकारी आदेश पर रोक लगा दी और याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी।