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संतान की लंबी उम्र के लिए रखें हलषष्ठी व्रत जानें शुभ मुहूर्त और नियम इन चीजों का खाना है वर्जित

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भारत में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार मनाए जाते हैं. रक्षा बंधन या श्रावण पूर्णिमा के ठीक 6 दिन बाद, भारत में हिंदू हर छठ या हलषष्ठी व्रत मनाया जाता है. यह पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में भाद्रपद के महीने के दौरान कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर मनाया जाता है. इस व्रत को अलग-अलग जगहों पर चंद्रषष्ठी, रंधन छठ, हलछट, बलदेव छठ और ललई छठ जैसे नामों से पुकारा जाता है. इस वर्ष यह हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त दिन बुधवार को मनाया जाएगा. इस दिन को बलराम जयंती (Balram Jayanti) के रूप में भी मनाया जाता है.सनातन परंपरा के अनुसार हलषष्ठी व्रत संतान की लंबी उम्र और उसके सुख सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से बेटे के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. आइए जानते हैं हल षष्ठी व्रत के नियम, पूजा की विधि. पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी पावन तिथि पर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था.

हलषष्ठी शुभ मुहूर्त

कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि आरंभ-16 अगस्त- मंगलवार रात 8 बजकर 19 से
कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि समाप्त-17 अगस्त-बुधवार, रात्रि 09: 21 मिनट
उदयातिथि के आधार पर हल षष्ठी 18 अगस्त को मनाई जाएगी.

हलषष्ठी व्रत की पूजा विधि
ललही छठ के व्रत वाले दिन महिलाएं सबसे पहले पवित्र मिट्टी की मदद से एक बेदी बनाकर उसमें पलाश, गूलर आदि की टहनियों और कुश को मजबूती से लगाती हैं. इसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा करती है. इस पूजा में बगैर जुते हुए खाद्य पदार्थ को अर्पित किया जाता है. इस व्रत में महुआ, फसही का चावल और भैंस का दूध और उससे बनी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. महिलाएं इन्हीं के माध्यम से इस व्रत का पारण करती हैं.

ये है हलषष्ठी व्रत के जरूरी नियम
इस व्रत को संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. इस व्रत को रखते समय कोई अन्न खाया जाता है और न ही हल से जुता हुआ कोई अनाज या सब्जी खाई जाती है और न पूजा में चढ़ाई जाती है. इस व्रत में तलाब में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ या फिर बिना जोते गए पैदा होने वाली चीजों का प्रयोग किया जाता है. इसी प्रकार हलषष्ठी व्रत में विशेष रूप से भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का ही प्रयोग होता है.

हलषष्ठी व्रत का धार्मिक महत्व
ये व्रत भगवान श्री कृष्ण के भाई दाऊ की जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दिन व्रत धारण करने से और विधि विधान से पूजा करने से मिलने वाले पुण्य के चलते संतान पर आने वाले संकट समाप्त होते हैं. हलछठ जैसा कि नाम से ही विदित है इस दिन बलराम जी के शस्त्र हल की पूजा की जाती है.

इन चीजों का खाना है वर्जित
व्रती लोगों को इस दिन हल से जुती हुई चीजों को नहीं खाना चाहिए.
महिलाएं तालाब में उगे हुए फलों या चावल खाकर व्रत किया जाता है.
व्रत में गाय के दूध या दूध से बनी हुइ कोई भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए
भैंस के दूध और उसके दूध से तैयार की गए घी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है.

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