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ISRO आज SSLV के साथ रचेगा इतिहास, कम समय में हल्के उपग्रह ऑन डिमांड कर सकेगा लॉन्च

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने पहले स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) रॉकेट के श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण के साथ रविवार को नया इतिहास बनाने जा रहा है। विश्वसनीय, शक्तिशाली रॉकेटों पीएसएलवी और जीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट व जियो सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल) के बाद पहली बार एसएसएलवी का उपयोग उपग्रह भेजने में होगा। मिशन के लिए वैज्ञानिक कई हफ्तों से जुटे थे।

दो उपग्रह भेजे जाएंगे

हम इस रॉकेट के जरिये बेहद कम समय व खर्च में 500 किलो तक के उपग्रह निचले परिक्रमा पथ (पृथ्वी से 500 किमी ऊपर तक) पर भेज सकेंगे। रविवार के मिशन में दो उपग्रह अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट- 02 और आजादीसैट इस मिशन में भेजे जा रहे हैं।

आजादी के 75वें साल में छात्राओं ने बनाए उपग्रह के 75 उपकरण

अपना पहले स्मॉल सैटेलाइट लॉन्ट व्हीकल (एसएसएलवी) रॉकेट रविवार को प्रक्षेपण करने जा रहे इसरो के इस ऐतिहासिक सफलता में विद्यार्थियों की टीम का भी श्रेय होगा। इसरो जिन दो उपग्रह अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-02 और आजादीसैट को इस मिशन में भेजेगा, उनकी तैयारियों में वैज्ञानिकों ने दिन-रात एक कर दिया है। आजादी के 75वें साल में आजादी सैट के 75 उपकरण वैज्ञानिकों की मदद से छात्राओं ने बनाए हैं।

माइक्रो श्रेणी के ईओ-02 उपग्रह में इंफ्रारेड बैंड में चलने वाले और हाई स्पेशियल रेजोल्यूशन के साथ आने वाले आधुनिक ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग दिए गए हैं। आजादीसैट आठ किलो का क्यूबसैट है, इसमें 50 ग्राम औसत वजन के 75 उपकरण हैं। इन्हें ग्रामीण भारत के सरकारी स्कूलों की छात्राओं ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इसरो के वैज्ञानिकों की मदद से बनाया। वहीं स्पेस किड्स इंडिया के विद्यार्थियों की टीम ने धरती पर प्रणाली तैयार की जो उपग्रह से डाटा रिसीव करेगी।

मिशन : पांच घंटे का प्रक्षेपण काउंटडाउन रविवार सुबह 04:18 मिनट पर शुरू हो गया है और 09:18 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण होगा। अन्य मिशन में काउंटडाउन 25 घंटे का होता है। प्रक्षेपण के 13 मिनट बाद ईओएस-02 और फिर आजादीसैट को परिक्रमा पथ पर रखा जाएगा।

एसएसएलवी के फायदे

  • सस्ता और कम समय में तैयार होने वाला।
  • 34 मीटर ऊंचे एसएसएलवी का व्यास 2 मीटर है, 2.8 मीटर व्यास का पीएसएलवी इससे 10 मीटर ऊंचा है।
  • एसएसएलवी 4 स्टेज रॉकेट है, पहली 3 स्टेज में ठोस ईंधन उपयोग होगा। चौथी स्टेज लिक्विड प्रोपल्शन आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल है जो उपग्रहों को परिक्रमा पथ पर पहुंचाने में मदद करेगा।
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