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‘चुप क्यों हैं PM मोदी? क्या यही है सबका साथ?’: गीतकार से ट्रोल बने जावेद अख्तर ने ‘बुल्ली बाई’ को धर्म संसद से जोड़ा

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डेस्क। पटकथा लेखक से गीतकार और फिर ट्विटर ट्रोल तक का सफर तय करने वाले जावेद अख्तर ने एक बार फिर से मुगलों का महिमामंडन किया है। इस बार उन्होंने अकबर को आक्रांता मानने से इनकार कर दिया। ये सब तब शुरू हुआ, जब इस्लामी इतिहास के जानकर तारिक फतह ने ‘गरुड़ प्रकाशन’ के संस्थापक संक्रांत सानु का एक उद्धरण शेयर किया। आक्रांताओं की आलोचना को जावेद अख्तर बर्दाश्त नहीं कर पाए और टपक पड़े।

तारिक फतह ने संक्रांत सानु का जो उद्धरण ट्वीट किया, वो है, “भारत एकमात्र ऐसी मुख्य सभ्यता है, जहाँ आपको व्यवस्थित तरीके से ये पढ़ाया जाता है कि आप अपनी ही विरासत से घृणा करें और इसे तबाह करने वाले आक्रांताओं का गुणगान करें। और इस (मूर्खता को) सेक्युलरिज्म कहा जाता है।” इस पर जावेद अख्तर ने पूछा कि क्या आप अमेरिका में हर एक श्वेत व्यक्ति को आक्रांता कहेंगे और उनके वंशजों को विदेशी बताएँगे?

उन्होंने आगे दावा किया कि अकबर एक भारतीय था, लेकिन आपके (तारिक फतह) माता-पिता भारतीय नहीं थे क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान में जाकर बसने का निर्णय लिया। जावेद अख्तर ने लिखा कि तारिक फतह सऊदी अरब में 11 वर्षों तक सुविधापूर्वक जीवन व्यतीत करने के बाद सेक्युलरिज्म का पाठ पढ़ा रहे हैं। साथ ही उन्होंने अंत में ‘Just Shut Up (एकदम चुप रहो)’ भी लिखा। तारिक फतह ने इसके बाद तगड़ा जवाब दिया।

उन्होंने लिखा, “जावेद अख्तर इस्लामी आक्रमण और हिंदुस्तान की तबाही के मुद्दे पर बहस करते समय नाली में गिरना पसंद करते हैं। मैंने जो संक्रांत सानु का उद्धरण शेयर किया था, उस पर जवाब देने की बजाए वो मुझे चुप रहने के लिए कह रहे हैं। मुझे बताया गया है कि जावेद अख्तर के पूर्वक अरब के थे, जिनका वंश खलीफा तक जाता है।” इस पर जावेद अख्तर कहने लगे कि उन्होंने तीन दशकों से भी अधिक समय से तीन तलाक, पर्दा प्रथा और मस्जिदों में लाउडस्पीकर का विरोध किया है।

लेकिन, साथ ही जावेद अख्तर ने ये भी कहा कि वो ‘कट्टरपंथी हिन्दू समूह’ का भी विरोध करते हैं और यही धर्मनिरपेक्षता है। उन्होंने तारिक फतह को एक ‘रीढ़विहीन मौकापरस्त’ करार देते हुए कहा कि वो ‘सत्ता के जूते चाटने वाले’ के अलावा और कुछ भी नहीं हैं। संक्रांत सानु ने भी जावेद अख्तर को याद दिलाया कि उत्तरी अमेरिका में किसी बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम से पहले वहाँ के मूल निवासियों के सम्मान में ‘लैंड एक्नॉलेजमेंट’ होता है, सोचिए ये भारत में भी हमारी जमीन पर बने मस्जिदों में नमाज से पहले हो?

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