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मजदूर दिवस स्पेशल : क्या होता है बोरे और बासी, आखिर क्यों छत्तीसगढ़ की जीवनशैली का अहम हिस्सा है ‘बासी’

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छत्तीसगढ़ ( chhattisgarh) एक प्रसिद्ध कहावत है – ‘बासी के नून नइ हटय’, इसका कहावत का हिन्दी भावार्थ है कि, बासी में मिला हुआ नमक नहीं निकल सकता। इस कहावत का उपयोग सम्मान के परिपेक्ष्य में किया जाता है। सवाल उठ सकता है कि आखिर यहां बात ‘बासी’ की क्यों हो रही है, तो बात जब किसी प्रदेश की होती है तो साथ में बात वहां के खान-पान की भी होती है।

छत्तीसगढ़ में खान-पान के साथ जीवनशैली का एक अहम हिस्सा है ‘बासी’। शायद इसलिए भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों( chhattisgarh film) में  ‘बासी’ खाते दिखाया जाता है।

छत्तीसगढ़ियों ( chhattisgarh) जीवन में ‘बासी’ इतना घुला-मिलाजब सुबह कहीं जाने की बात होती है तो बासी खाकर निकलने का जवाब मिलता है, इससे पता चल जाता है कि व्यक्ति सुबह 8 बजे के बाद घर( home) से निकलेगा। वहीं दोपहर के वक्त बासी खाने के समय की बात हो तो मान लिया जाता है कि लगभग 1 बजे का समय है।

बोरे और बासी बनाने के विधि ( receipe) 

बोरे से अर्थ, जहां तत्काल चुरे हुए भात (चावल) को पानी में डूबाकर खाना है। वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर भात (चावल) को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है। कई लोग भात के पसिया (माड़) को भी भात और पानी( water) के साथ मिलाने में इस्तेमाल करते हैं।

इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दुगुना ( double) 

इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है। इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दुगुना हो जाता है।

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