तापस सन्याल/ भिलाई: नगरी निकाय चुनाव में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रहा है वैसे-वैसे चुनाव का प्रचार भी पड़ रहा है निर्दलीय प्रत्याशी भी पार्टी का ही एक अंग होता है और उसकी भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता निर्दलीय वह तब जाकर बनता है जब उसे पार्टी टिकट नहीं देती ऐसा नहीं कि हर समय पार्टी का ही डिसीजन सही हो या गलत हो इसी कारण तो निर्दलीय का उत्पत्ति होता है और चुनाव में निर्दलीय की भूमिका भी कुछ कम नहीं होती इतिहास गवाह है निर्दलीय को जिओ से अपने आप को साबित करना पड़ता है पार्टी का एक कैडर वोट होता है मगर निर्दलीय को जिओ से चालू कर अपने आप को साबित कर चुनाव जीत कर साबित करना होता है निर्दलीय प्रत्याशी भी तो पार्टी का ही एक अंग है जिसे पार्टी के डिसीजन सही ना लगने पर निर्दलीय का रूप लेता है इसलिए तो कहते हैं कि पार्टी का एक अंग है निर्दलीय प्रत्याशी उसके विचारधारा उसी पार्टी के ही होते हैं जिस पार्टी ने उसे टिकट नहीं दिया वह निर्दलीय का रूप ले लेता है फिर बाद में कम ज्यादा होने पर निर्दलीय की भूमिका बढ़ जाती है कुछ वापस पार्टी पर चले जाते हैं कुछ निर्दलीय बनकर ही रह जाते हैं मगर इतिहास गवाह है कि निर्दलीय फिर वापस अपने पार्टी में चले जाते हैं या कोई अन्य पार्टी पकड़ लेते
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