रायपुर : 700 साल पुराना कंकाली मठ साल में एक बार दशहरा पर्व पर खोला गया। मठ में रखे गए प्राचीन शस्त्रों की विधिवत पूजा की गई। शुक्रवार को दिन भर श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। रात्रि 9 बजे पूजा अर्चना करके मठ के पट फिर एक साल के लिए बंद कर दिया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इसी मठ में पहले मां कंकाली विराजित थीं। जो 400 साल पहले मंदिर में स्थानांतरित की गई थीं।
मठ के महंत हरभूषन गिरी ने बताया कि प्राचीन मठ में सैकड़ों साल पहले के अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं, दशहरा के दिन उन शस्त्रों की पूजा करके आम जनता के दर्शनार्थ रखा जाता है। दशहरा पर एक ही दिन के लिए मठ खोलने की परंपरा 400 साल से निभाई जा रही है, जब माँ कंकाली को मठ से नए मंदिर में स्थानांतरित किया गया था।
नागा साधुओं ने की थी स्थापना
प्राचीन मंदिरों का इतिहास संबंधित पुस्तक ‘रायपुर का वैभव’ में उल्लेख है कि 13वीं शताब्दी में नागा साधुओं ने तांत्रिक साधना के लिए यहां डेरा डालकर मठ की स्थापना की थी। यहीं पर श्मशान था और तालाब में कंकाल यानी अस्थियां प्रवाहित की जाती थीं। इसके चलते नाम कंकाली तालाब पड़ गया। नागा साधुओं ने मठ में देवी प्रतिमा स्थापित की और मां कंकाली नाम रखा।
अनेक महंतों ने दी सेवा
13वीं शताब्दी में मठ की स्थापना हुई। 400 साल बाद 17वीं शताब्दी में मठ के पहले महंत कृपालु गिरी हुए। इसके बाद भभूता गिरी, शंकर गिरी महंत बने। तीनों निहंग संन्यासी थे। महंत शंकर गिरी ने निहंग प्रथा को समाप्त कर शिष्य सोमार गिरी का विवाह कराया। उनकी संतान नहीं हुई फिर शिष्य शंभू गिरी को महंत बनाया। शंभू गिरी के प्रपौत्र रामेश्वर गिरी के वंशज वर्तमान में कंकाली मठ के महंत एवं सर्वराकार हैं।
महंत ने ली जीवित समाधि
कहा जाता है कि मठ के महंत कृपालु गिरी को माता ने स्वप्न में दर्शन देकर मठ से हटाकर तालाब के किनारे टीले पर मंदिर बनवाकर स्थापित करने का आदेश दिया। महंत ने कंकाली मंदिर का निर्माण करवाया और हरियाणा से अष्टभुजी श्रीविग्रह को मंगवाकर प्रतिष्ठिापित किया। देवी मां ने महंत को बालिका के रूप में दर्शन दिया और अदृश्य हो गई। महंत समझ नहीं पाए। इसके बाद महंत ने कंकाली मंदिर के समीप ही जीवित समाधि ली।
कंकाली मठ में शस्त्र
कंकाली मठ में एक हजार साल से अधिक पुराने शस्त्रों में तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, संतों का चिमटा, तीर-कमान हैं रखे हुए हैं।