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छत्तीसगढ़ में मिली ‘कामधेनु’ गाय, इस विशेषता की वजह से गोल्डन बुक में दर्ज होगा सौम्या का नाम

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रायपुर : पौराणिक कथाओं के साथ ही रामायण और महाभारत काल में कामधेनु गाय की महत्ता का जिक्र मिलता है। कथाओं के अनुसार महाभारत काल में महर्षि जमदग्नि के आश्रम में कामधेनु गाय थी। इसकी वजह से आश्रम की समृद्धि की चारों ओर चर्चा थी। ऐसी ही एक गाय के छत्तीसगढ़ में मिलने का दावा किया जा रहा है। सौम्या नाम की इस गाय को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड  में दर्ज करने की तैयारी है।

यह गाय खैरागढ़ के मनोहर गौशाला में है। सामान्य गायों से अलग कद-काठी वाली इस गाय को 3 साल पहले गौशाला लाया गया था। तब से नियमित रूप से यह गौशाला में रहने वाले 40 बछड़ों को दूध पिलाती है। इस गाय की खासियत है कि इसकी पूंछ सामान्य गायों से अधिक लंबी यानि कि 54 इंच है।

गाय के पीछे के पैर में कमल का डंडा, आगे के दोनों पैरों में एक तरफ तीन लकीर और एक पैर में पांच लकीर हैं। इसके अलग-अलग वैदिक मायने बताए जाते हैं। गोल्डन बुक की पर्यवेक्षण कमेटी ने लगभग 8 महीने तक गाय की निगरानी करने के बाद रेकॉर्ड में दर्ज करने का फैसला लिया है। गौशाला संचालन समिति के पदम डाकलिया ने बताया कि 15 अक्टूबर को गोल्डन बुक रेकॉर्ड दिया जाएगा।

दूध नहीं देती थी गाय
3 साल पहले यह गाय एक किसान के यहां थी। कुछ दिनों बाद उसने दूध देना बंद कर दिया। किसान ने गाय से दूध प्राप्त करने के लिए कई नुस्खे आजमाए, लेकिन सब नाकाम रहा। जितने दिनों तक गाय किसान के यहां थी, उसे कुछ अलग तरह के अनुभव हुए। लिहाजा उसने गाय को गौशाला में दे दिया। इस गौशाला में तस्करों से छुड़ाए गए 200 से अधिक गाय, बैल और बछड़े हैं। गौशाला में आने के कुछ दिनों बाद ही कामधेनु ने दूध देना शुरू कर दिया। वह खुद ही बछड़ों के पास जाकर दूध पिलाने लगी।

गोमूत्र और गोबर के उत्पाद
इस गौशाला में गोमूत्र और गाय के गोबर से कई उत्पाद तैयार किए जाते हैं। गोमूत्र के अर्क से कैंसर के इलाज तक का दावा किया जा रहा है। संचालकों के मुताबिक कई कैंसर पीड़ित नियमित रूप से गोशाला से गोमूत्र ले जाते हैं और उसका सेवन करते हैं। वहीं, गोबर से धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होने वाले यंत्र तैयार किए जाते हैं।

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