

(नवागढ़ ब्यूरो) संजय महिलांग l आज दशहरा के पावन अवसर पर शमी वृक्ष और अपराजिता पुष्प और सफेद पलास वृक्ष के पूजा करने मंदिर जाते हुए रास्ते में किशोर राजपूत को नीलकंठ के दर्शन हुआ।शास्त्रों में नीलकंठ महादेव का मंगलकारी एवं शांत मूर्त के अंतर्गत एक सौम्य स्वरूप माना जाता है। इस सौम्य स्वरूप के विषय में श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में एक कथा आई है जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र से ‘हलाहल’ नामक विष निकला। उस समय सभी देवों की प्रार्थना तथा पार्वती जी के अनुमोदन से शिवजी ने हलाहल का पान कर लिया और हलाहल को उन्होंने कंठ में ही रोक लिया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।श्रीमद्भागवत के चौथे अध्याय में- ‘तत्पहेमनिकायाभं शितिकण्ठं त्रिलोचनम्’ कहकर भगवान शिव के नीलकंठ वाले सौम्य रूप का वर्णन किया गया है।वर्तमान समय में नीलकंठ नामक पक्षी को भगवान शिव (नीलकंठ) का प्रतीक माना जाता है। उड़ते हुए नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना सौभाग्य का सूचक माना जाता है। ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री द्वारा रचित पुस्तक ‘खगोपनिषद्’ के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार नीलकंठ साक्षात् शिव का स्वरूप है तथा वह शुभ-अशुभ का द्योतक भी है।
