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पारंपरिक सांस्कृतिक दशहरा का आयोजन रावण भाठा मैदान में 15 अक्टूबर को

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रायपुर। श्री दूधाधारी मठ एवं सार्वजनिक दशहरा उत्सव समिति रावण भाठा के संयुक्त तत्वाधान में ऐतिहासिक सांस्कृतिक पारंपरिक दशहरा का आयोजन प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी हर्षोल्लास के साथ आयोजित होने जा रहा है। दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज वर्मा ने पत्रकारों से चर्चा में बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार समय 4 बजे रावण भाठा मैदान जलगृह रायपुर में होगा। मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं अध्यक्षता विधायक एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल व अतिविशिष्ठ अतिथि सुनील सोनी सांसद रायपुर, एजाज ढेबर महापौर नगर पालिक निगम, विकास उपाध्याय संसदीय सचिव एवं विधायक, प्रमोद दुबे सभापति नगर पालिक निगम, श्रीमती मिनल चौबे नेता प्रतिपक्ष नगर पालिका निगम, मृत्जंय दुबे पार्षद नगर पालिक निगम, सतनाम पगार, समीर अख्तर, अमिन दास, चंद्रपाल धनगर कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे। पत्रकार वार्ता में सार्वजनिक दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज वर्मा, संयोजक सुशील ओझा, सचिव अमित साहू, मुख्य सलाहकार प्रभात मिश्रा, उत्सव समिति के अजय तिवारी, नरेश कश्यप, राजा ठाकुर, रमेश ठाकुर, बंटी यादव, सौरभ सिंह, पुनीत देवांगन, हेमंत निर्मलकर, दीपक, अरूण निर्मलकर उपस्थित थे। ज्ञात हो कि रावण भाठा दूधाधारी मठ का इतिहास न केवल पौराणिक है अपितु अनेक सांस्कृतिक महत्वों को अपने में लिए हुआ है ज्ञात अज्ञात अनेक संदर्भों के साथ इसका प्रारंभ 1610 ई. से माना जाता है। हमारा छत्तीसगढ़ जो दक्षिण कोसल के नाम से भी इतिहास में व वर्तमान में प्रचालित है। रत्नगर्भा, अन्नगर्भा छत्तीसगढ़ की संस्कृति विशाल है इसमें समाहित अनेक सांस्कृति तत्व इसके महत्व को बढ़ाते है, वही एक ओर त्रेतायुग से इसके संदर्भों को देखे तो भगवान राम का ननिहाल यहां होने से छत्तीसगढ़ के कण-कण में और जन-जन में इसका प्रभाव अमिट रूप से समाया हुआ है, वहीं उसके बहुत बाद के कालखंड में बुद्ध का छत्तीसगढ़ प्रवास श्रीपुर (सिरपुर) में दिखता है साथ ही छिंदक नाग वंशी, नल वंशी, हैहय क्षत्रिय वंशीय राजाओं के योगदान से व अनेक निर्माण कार्यों की भव्यता दिव्यता शिलालेखों, मंदिरों में अपने समय के स्वर्णिम गौरव गान करते हुए आज भी हमे प्रेरणा प्रदान करते दिखते है।
1610 जहां से दूधाधारी मंदिर का व्यवस्थित इतिहास प्रारंभ माना जाता है और वीरता के प्रतीक अखाड़ा अपने शौर्य की बानगी करते दिखते है। बालाजी की पालकी, पारंपरिक पूजन साथ ही तलवार बाजी, श्रृंगार, दंड युद्ध, आतिशबाजी, रावण दहन मुख्य आकर्षकों में से रहेंगे, उसके अतिरिक्त मेला, पतंगबाजी से इस आयोजन की मनोहारी छटा शाम के समय चहुँओर निखरती, बिखरती दिखाई देती है, जिससे सारा आकाश इससे आ’छादित हो जाता है।
कोविड प्रोटोकाल को देखते हुए आयोजन में इसका ध्यान रखा जायेगा। अन्य आकर्षणों में सम्मान समारोह-कोविड पूर्व व पश्चात जिन संस्था, समितियों ने उत्कृष्ट कार्य मानव सेवा के लिए किया है उनका सम्मान भी इसी दिन मंच से होना है।

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