- भ्रष्टाचार व धोखाधड़ी के मामले में बर्खास्त बैंक कर्मी की बर्खास्तगी को हाई कोर्ट ने ठहराया सही
बिलासपुर। हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि नैतिक जिम्मेदारी व निष्ठा के मामले में दोषी ठहराए गए बैंक कर्मी की बर्खास्तगी उचित है। कोर्ट ने इस आदेश के साथ ही आरोपित बैंक कर्मी की याचिका को खारिज कर दिया है। भाटापारा निवासी प्रशांत श्रीवास्तव पिता स्व. कांशीप्रसाद श्रीवास्तव स्टेट बैंक में कृषि सहायक के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2012 में उनके खिलाफ बैंक में अनियमितता करने की शिकायत मिली। जिस पर सीबीआइ ने जांच की। जांच मंे दोषी पाए जाने पर सीबीआइ ने उसके खिलाफ षडयंत्र कर धोखाधड़ी, कूटरचना व भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। इस प्रकरण में आरोपित बैंक कर्मी को सजा भी हो गई। इसके बाद बैंक ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 10(1)(बी)(आई) में निहित प्रविधानों के तहत बैंक कर्मी प्रशांत को बर्खास्त कर दिया। इस पर अपनी बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। याचिका में बताया गया कि बैंक की सेवा में द्विपक्षीय समझौता रहता है। इसके तहत बैंक प्रबंधन और कर्मचारी के बीच किसी भी गलती के लिए छोटी सजा दी जानी चाहिए। उक्त अधिनियम के तहत बैंक ने बड़ी सजा देकर उनकी सेवा कार्य को दरकिनार कर दिया गया। याचिका में बताया गया कि याचिकाकर्ता को गलत तरीके से फंसाया गया है। इसी आधार पर उसे दोषी ठहरा कर सजा दे दी गई है। जबकि, याचिकाकर्ता ने अपनी सजा के खिलाफ अपील की है। जो विचाराधीन है। इस मामले में बैंक की तरफ से उनके अधिवक्ता पीआर पाटनकर ने तर्क दिया। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता की नैतिक जिम्मेदारी व इमानदारी पर सवाल है और इसी तरह के मामले में दोषी ठहराया गया है। बैंकिंग विनियमन अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई सर्वोपरी है। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने बैंक के अधिवक्ता के तर्कों को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। साथ ही कहा है कि अपराधिक प्रकरण में दोषी ठहराए गए कर्मचारी की बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई उचित है।

