- ग्रामीणों के मन को प्रशासन ने भांपा, तेजी के साथ शुरू हुआ मत्स्य हेचरी का निर्माण
- 15 साल से बंद पड़े मत्स्य प्रसंस्करण केंद्र किया जा रहा पुनः प्रारंभ
- मत्स्य पालन से पूर्णतः आत्मनिर्भर होगा सुकमा
बालकृष्ण मिश्रा/सुकमा: जिले में बदलाव की बयार अब तेजी के साथ पैर-पसार रही हैं । एक समय था जब सुकमा केवल नक्सलवाद के नाम से जाना जाता था और इसके दंश से इसकी पहचान हमेशा से पिछड़े व कमजोर जिले के रूप में होती रही लेकिन अब वही सुकमा विकास के नित-नए आयाम रचते हुए आत्मनिर्भर होने के दिशा में आगे बढ़ रहा हैं ।जिले का डुब्बाटोटा एक ऐसा गाँव हैं जहाँ की तस्वीर एक समय बेहद विकसित व आत्मनिर्भर क्षेत्र के रूप में हुआ करती थी लेकिन समय बदला और 2006 के समय शुरू हुए सलवा जुडूम ने इसे अपनी चपेट में ले लिया और यहां की पूरी तशवीर ही पलट गई । नक्सल गतिविधियों के कारण मत्स्य उत्पादन का यह केंद्र पूर्णतः बंद हो गया । लेकिन शासन-प्रसाशन के प्रयास से एक बार फिर से यहाँ के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव तेज हो रहा हैं । कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कुछ समय पहले गाँव का दौरा किया था और ग्रामीणों के पास बैठकर उनसे विस्तार से चर्चा करके जानकारी ली थी । ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि किस तरह पहले यहाँ मछली बीज का उत्पादन होता था और इससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी होती थी । कलेक्टर ने ग्रामीणों के मन को भांपा और उनकी मांग पर पुनः मत्स्य हैचरी को प्रारंभ करने का आस्वासन दिया । उसके बाद से ही यह हेचरी का कार्य तेजी के प्रारंभ हो गया, कलेक्टर विनीत नंदनवार ने मत्स्य विभाग को बिंदुवार स्थिति बताकर इसके लिए प्रोजेक्ट बनाने को कहा । आज मत्स्य हेचरी का निर्माण कार्य तेजी के साथ किया जा रहा हैं । जिला प्रसाशन के प्रयास से एक बार पुनः डुब्बाटोटा गांव आत्म निर्भर होने के दिशा में आगे बढ़ रहा हैं ।
ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति होगी मजबूत
डुब्बाटोटा में मत्स्य हेचरी शुरू होने पर यहां के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और उन्हें इससे रोजगार मिलेगा । मत्स्य हेचरी से इलाके की तश्विर तो बदलेगी ही साथ ही पूरे जिले में मछली बीज के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भरता पूर्ण रूप से बंद हो जाएगी । वही जिलेवासियों को स्थानीय स्तर पर ही ताज़ी मछलियां उपलब्ध होंगी ।प्रसंस्करण केंद्र के पुनः प्रारंभ होने से मत्स्य बीज उत्पादन हेतु सुकमा पूर्णतः आत्मनिर्भर हो जायेगा। जिले भर में मत्स्य हेचरी से बीज लेकर ग्रामीण मछलियों का उत्पादन करेंगे और इसका क्रय-विक्रय होने पर ग्रामीणों के साथ-साथ जिला भी सशक्त होगा ।
दूसरे राज्यों पर रहती थी निर्भरता
मछली उतपादन हेतु बीज के लिए सीमावर्ती राज्य ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलांगना पर निर्भर रहना पड़ता था और अधिक डर और यह उपलब्ध हो पाता था । लेकिन डुब्बाटोटा में हेचरी प्रारंभ होने पर यह आसानी से उचित दाम पर उपलब्ध हो जाएगा और दूसरे राज्यों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।
3.61 हेक्टेयर प्रक्षेत्र में 1 करोड़ 92 लाख की लागत से हो रहा जीर्णोधार
जिले में 1990 के आसपास दुब्बाटोटा में निर्मित मत्स्य बीज प्रक्षेत्र में मत्स्य उत्पादन, मत्स्य बीज उत्पादन का कार्य प्रारंभ था। अंदरूनी गांव होने के कारण सलवा जुडूम का प्रभाव दुब्बाटोटा पर भी रहा और मत्स्य प्रसंस्करण का कार्य बंद करना पड़ा। तब से यह प्रसंस्करण केंद्र निष्क्रिय रहा, किंतु अब दुब्बाटोटा के ग्रामीणों के जीवन में बदलाव निश्चित है। आदिवासी अंचलों का विकास और उनके निवासियों को आर्थिक संवर्धन प्रदान करना शासन की प्राथमिकता है, और इसी का नतीजा है की इतने लंबे समय से बंद पड़े मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का जीर्णोधार किया जा रहा हैं। ग्राम दुब्बाटोटा में 3.61 हेक्टेयर में फैले प्रक्षेत्र पर 1 करोड़ 92 लाख की लागत से नव निर्माण एवं जीर्णोधार कार्य संपादित हो रहे हैं। जिसमे 13 नर्सरी एवं 3 ब्रीडर तालाब का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। प्रक्षेत्र में पाइपलाइन विस्तार, विद्युतीकरण, सर्कुलर हैचरी, गोदाम, पैकिंग शेड, बाउंड्रीवॉल सहित अन्य निर्माण कार्य प्रगतिरत हैं।
वह तश्विर आज भी मन मे आती हैं : ग्रामीण
डुब्बाटोटा में मत्स्य हेचरी का पुनः निर्माण शुरू होने से यहां के ग्रामीणों में खुशी की लहर हैं । गाँव के बुजुर्गों का कहना हैं कि पुराने दिन वापिस लौट रहें हैं ऐसा महसूस हो रहा हैं । वह तश्विर आज भी मन मे आती हैं जब यहां के मछली बीज दूसरे इलाकों में पहुँचते थे, अच्छी आमदनी उन्हें होती थी । फिर सब कुछ बदल गया और यहां का मछली बीज का व्यापार बन्द हो गया । उनमें से किसी को भी यह विश्वास नहीं था कि यह सब कुछ वापिस से लौटकर आएगा लेकिन अब उन्हें बेहद खुशी हैं कि पुराने अच्छे दिन लौटकर आ रहें हैं ।

