मंगलवार को कैबिनेट की बैठक करीब साढ़े 6 घंटे चली। जानकार बताते हैं कि राज्य बनने के बाद अब तक की सबसे लंबे समय तक चलने वाली बैठक थी। बैठक में एजेंडा भी काफी था। कुल मिलाकर 40 प्रस्ताव थे। मगर बैठक में महाराज सिंहदेव गैर हाजिर थे। कैबिनेट की सुबह उन्होंने सीएस को इत्तला कर दिया था और पारिवारिक वजहों से भोपाल चले गए। महाराज की गैर हाजिरी पर कानाफूसी हो रही है। उन्होंने कैबिनेट की प्रेसी तो खोली थी, और एजेंडा भी देख लिया था। चर्चा है कि उन्हें अपने विभाग से जुड़े एक एजेंडा से असहमत थे। एजेंडा यह था कि ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल निर्माण के लिए निजी संस्थाओं को अनुदान दिया जाएगा। इसका पूरा खाका तैयार है। महाराज इससे सहमत नहीं थे, और स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के लिए निजी संस्थाओं को अनुदान देने की योजना उन्हें रास नहीं आई। वे मीडिया के जरिए अपनी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं, लेकिन महाराज की सुनता कौन है? कैबिनेट में अपनी असहमति दर्ज कराने के बजाए गैरहाजिर रहना बेहतर समझा। अब कैबिनेट में नहीं पहुंचे, तो प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हुई।
महिला नेत्री के लिए माननीय का जोर
छत्तीसगढ़ में निगम-मंडल में नियुक्ति तो हो गई, लेकिन इसमें कई अपेक्षित नाम गायब हैं और कई अनपेक्षित पद पा गए हैं। ऐसा ही नाम राजधानी की एक महिला नेत्री का है, जिन्हें एक बड़े मंडल में उपाध्यक्ष का पद दिया गया है। पार्टी के कई बड़े नेता तक इस महिला नेत्री से परिचित नहीं हैं, बावजूद इसके उन्हें पद मिल गया। लोगों ने इस बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि उन्हें एक दमदार मंत्री की सिफारिश पर पद दिया गया है। बताया जा रहा है कि मंत्रीजी ने उन्हें पद दिलाने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया था और पार्टी के बड़े नेताओं के नाक में दम कर दिया था। बार-बार उनका नाम आने से पार्टी के एक बड़े नेता ने सवाल भी उठाया कि आखिर पार्टी में उनका योगदान क्या है ? सवाल इसलिए भी उठाया गया कि उन्हें न तो किसी कार्यक्रम में देखा गया और न ही पार्टी दफ्तर में उनका आना-जाना है, लेकिन मंत्रीजी तो पहले से ठान के बैठे थे कि महिला नेत्री को निगम-मंडल में एडजस्ट करना ही है तो उन्होंने बड़े नेता को दलील दी कि वो पार्टी दफ्तर या कार्यक्रमों में सक्रिय नहीं है, लेकिन इन दोनों जगहों के अलावा वो खूब सक्रिय हैं और पार्टी का जनाधार बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जवाब सुनकर बड़े नेता भी माजरा नहीं समझ पाए। बड़े नेता ने मंत्रिमंडल में सहयोगी दूसरे मंत्री से इस बारे में जानकारी ली, तो पता चला कि महिला नेत्री केवल मंत्रीजी के आसपास सक्रिय रहती हैं। खैर, उन्हें पद तो मिल गया। स्वाभाविक है कि जो जिज्ञासा बड़े नेता की थी, वो पार्टी के दूसरे नेताओं की भी है। अब पार्टी नेता और कार्यकर्ता भी अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए आपस चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चा में कई तरह के कहानी सामने आ रही है। अब देखना यह है कि मंत्रीजी पूरे मामले को किस तरह संभालते हैं।
अध्यक्ष के तेवर से निकलते संकेत
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के तेवर और रूख से पार्टी के कई बड़े नेता सकते में है। कांग्रेसी ये अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि मरकाम किस गुट के साथ कितने दूर तक चलेंगे। उनकी नियुक्ति टीएस बाबा की सहमति और राजनीतिक दांवपेंच के चलते हुई। लेकिन कुछ ही दिन बाद उनकी बाबा के साथ दूरियां दिखने लगे। फिर वे मुख्यमंत्री के साथ नजर आने लगे, परन्तु बाद में सीएम के साथ भी खटपट की खबरे आने लगी। लगता है कि सीएम भी अध्यक्ष के कामकाज से खुश नहीं हैं। एक बार तो विधायक दल की बैठक में सीएम के साथ तल्खी की भी खूब चर्चा होती है। अब विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत उनके क्षेत्र में संगठन की नियुक्तियों को लेकर खफा है। महंत पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान इस मुद्दे पर सीएम के सामने अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। दरअसल, महंत को आशंका है कि उनके इलाके में दूसरे क्षेत्र के नेता की नियुक्ति करके उनके पीछे लगा दिया गया है। महंत तो यहां तक बोल गए थे कि जिस नेता को उनके पीछे लगाया गया उसी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाए, तो बेहतर होगा। खैर, यह कांग्रेस संगठन का मामला है और बड़े नेताओं के बीच खींचतान या दांवपेंच नई बात नहीं है, लेकिन इस मसले पर उद्योग मंत्री कवासी लखमा की टिप्पणी रोचक है। वे कहते हैं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु साय शांत स्वभाव के है और उनका व्यवहार सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष जैसा है, जबकि हमारे यानी कांग्रेस के अध्यक्ष आक्रमक है। विपक्षी दल के अध्यक्ष की तरह सक्रिय रहते हैं। उधर, पार्टी में बड़े नेताओं के साथ खटपट के बीच मरकाम अचानक दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात करके आ गए हैं। स्वाभाविक है कि इससे हाईकमान के बीच उनकी दखल का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है, लेकिन पार्टी के नेता यह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने दिल्ली में क्या रिपोर्ट दी है।
सेवा के आड़ में मेवा
छत्तीसगढ़ में सेवा की आड़ में मेवा खाने वालों की अब जाकर पोल खुल गई है। भाजपा सरकार में प्रभावशाली रहे एक डॉक्टर का परिवार राज्य में विमान सेवा और हेलीकॉप्टर किराए पर उपलब्ध कराने का काम गुपचुप तरीके से करते आ रहा था। जबकि किराए पर चलने वाले हेलीकॉप्टर व विमान की सेवा को लेकर हर बार सदन के भीतर और बाहर जमकर हंगामा होता रहा है। इसके बाद टेंडर प्रक्रिया नहीं हुई। अब जाकर ग्लोबल टेंडर हुआ तो सेवा की आड़ में मेवा बटोरने वालों के साथ खेला हो गया। टेंडर में पिछली कंपनी की तुलना में रेट भी काफी कम आए हैं, जिसके बाद सालों से सेवा देने वाली कंपनी के पास मैदान छोड़कर भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
माननीय का सामाजिक दबाव
चर्चा है कि एक सीनियर विधायक को सिर्फ इसलिए पद नहीं मिल रहा है, क्योंकि उन्हीं के समाज के एक ताकतवर मंत्री ने वीटो लगा दिया है। सीनियर विधायक ने अपेक्स बैंक चेयरमैन के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी, लेकिन बात मंत्री जी तक पहुंची, तो उन्होंने इसका विरोध किया। दाऊजी भी मंत्री जी को नाराज नहीं करना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने चेयरमैन की कुर्सी बैजनाथ चंद्राकर को दे दी। किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। दुर्ग जिले के एक प्रभावशाली युवा नेता को दाऊजी निगम मंडल में बिठाना चाहते थे। युवा नेता कभी क्षेत्रीय दल के बैनर तले मेयर चुनाव में अपनी ताकत दिखा चुके हैं, लेकिन यहां भी मंत्री जी ने रोड़ा अटका दिया और युवा नेता पद पाते रह गए। मंत्री जी समाज में असर रखते हैं और उनकी ख्वाइश है कि उनके समकक्ष समाज में कोई दूसरा नेता न हो।
अफसरों को नया टास्क
मंत्रियों और अफसरों के साथ विभागीय समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नया टास्क दे दिया है। उन्होंने सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं को समय सीमा के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए हैं। इसकी मॉनिटरिंग सीएस अमिताभ जैन करेंगे। इतना ही नहीं, सीएम ने सीएस से कहा है कि वे विभागीय सचिवों से चर्चाकर डेडलाइन तय कर लें और तारीख को डायरी में नोटकर करके उसकी समीक्षा करें, ताकि काम समय में धरातल पर दिखाई दे। उन्होंने सीएस से अगली बैठक में कामकाज की प्रगति की समीक्षा की पूरी रिपोर्ट मांगी है। अब देखना यह है कि कोरोना काल में अलसाय बैठे अधिकारियों को सीएम का टास्क कितना एक्टिव कर पाती है। हालांकि पिछली समीक्षा बैठक में सीएम के तेवर और अधिकारियों की क्लास के बाद उम्मीद है कि अफसर फाइल या कागज पलटाने की गलती नहीं करेंगे। क्योंकि ऐसा करने वाले कुछ अफसरों को पहले ही हिदायत मिल चुकी है। अधिकारियों के पास अब दो विकल्प बचे हैं, या तो काम दिखाएंगे या फिर बोरिया-बिस्तर बांध के आएंगे।
बाल-बाल बचे अफसर
दाऊजी विशेषकर खेती किसानी, और सिंचाई के अच्छे जानकार हैं। उन्हें घूमना आसान नहीं है। कुछ समय पहले विभागीय बैठक में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए डाइक निर्माण पर चर्चा हो रही थी। एक सिंचाई अफसर ने मोबाइल से फोटो दिखाया और कहा, इस तरह डाइक का निर्माण होगा। दाऊजी ने फोटो देखकर अफसर पर आंखे तरेरी, और कहा-डाइक खेत पर नहीं बनता है। तभी वन विभाग के एक सीनियर अफसर ने अपने मोबाइल से डाइक निर्माण का वीडियो मंगवा लिया, और दाऊजी को दिखाया। दाऊजी खुश हुए, और बाकी अफसरों को देखने के लिए कहा। उन्हें बताया कि डाइक निर्माण नदी के रेतीले हिस्से में होता है। ज्यादा होशियारी दिखाने के चक्कर में अफसर मुश्किल में फंस गए थे।
सामंती नहीं, सीमांत किसान नेता की दरकरार
छत्तीसगढ़ में साल 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसके लिए अभी से भाजपा-कांग्रेस में तैयारी शुरू हो गई है। कांग्रेस का फोकस बूथ पर है। कांग्रेस ने बूथ प्रबंधन के लिए संभाग स्तर पर प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। इसको लेकर संगठन के प्रभारी बड़े नेता लगातार बैठकें कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा में भी चुनावी तैयारी शुरू हो गई है। पिछले विधानसभा में भाजपा की जिस तरह करारी हार हुई है, उसके बाद से पार्टी में हलचल ज्यादा है। पार्टी के प्रभारी नेता भी मान रहे हैं कि सत्ताधारी दल के मुखिया का किसान होना, उनके लिए चुनौती है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ियावाद का मुद्दा भी खूब सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे में साफ है कि बीजेपी को स्थानीय और किसान नेता की तलाश है। हालांकि भाजपा में ऐसे कई नेता हैं जिनके पास बड़े-बड़े खेत और खलिहान हैं, जहां वे रेघ और ठेके पर खेती करवाते हैं, इसके बावजूद मुश्किल यह है कि उन नेताओं की किसान वाली छवि नहीं है। अधिकांश के बारे में लोगों की सोच सेठ-साहूकार और सामंती किसान की है, जबकि पार्टी को सीमांत किसान की आवश्यकता है।