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इन्फ्रारीनल एओर्टिक डायसेक्शन नामक बीमारी का सफल ऑपरेशन: पेट की नस फटने से नस की परतों के बीच बहने लगा खून, डॉक्टरों कृत्रिम नस लगाकर बचाई जान

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रायपुर : पंडित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में डॉक्टरों ने इन्फ्रारीनल एओर्टिक डायसेक्शन नामक बीमारी का सफल ऑपरेशन कर रायपुर निवासी 40 वर्षीय मरीज को नई जिंदगी दी। इस बीमारी में मरीज के धमनी की आंतरिक दीवार क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसकी वजह से खून का प्रवाह धमनी के बाहर होने लगा था। हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी के विभाग के अध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं टीम ने ने इस दुर्लभ बीमारी का सफल ऑपरेशन करते हुए क्षतिग्रस्त नस के हिस्से को काटकर शरीर से अलग करते हुए वहां कृत्रिम नस लगा दिया।

हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया, इन्फ्रारीनल एओर्टिक डायसेक्शन का यह राज्य में प्रथम तथा किसी भी सरकारी संस्थान में पहला ऑपरेशन है। यह डीबेकी टाइप 3 या स्टेनफोर्ड टाइप बी एओर्टिक डायसेक्शन है। यह दुर्लभ बीमारी 30 लाख लोगों में से एक को होती है। समय पर इलाज न मिलने से 50 प्रतिशत मरीज की मृत्यु 24 से 48 घंटे के भीतर हो जाती है। मरीज के बड़े भाई टी. अरैया ने बताया, “मेरा 40 वर्षीय भाई तीन महीनों से पेट और कमर दर्द की समस्या से परेशान था। स्थानीय डॉक्टरों को दिखाने के बाद उसे किडनी की पथरी समझकर उसका उपचार किया। ओड़िशा के अस्पतालों में दिखाया। उसके बाद वहां पर भी कोई डायग्नोसिस नहीं पता चल पाया। अंततः थक हारकर हम एक बड़े सेंटर में गए जहां पर उसके पेट की महाधमनी की एंजियोग्राफी (एओर्टोग्राम) की गई तो पता चला कि पेट के अंदर स्थित महाधमनी (एब्डामिनल एओर्टा) में किडनी के ठीक नीचे स्थित महाधमनी (इन्फ्रारीनल एओर्टा) की आंतरिक दीवार के फट जाने के कारण खून आंतरिक एवं मध्य दीवार के बीच भर रहा था। इसकी वजह से पेट से नीचे अंगों में पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पा रहा था। ऐसे में उसके पैरों एवं पेट में दर्द रहता था। हायर सेंटर से हम अपनी पूरी रिपोर्ट लेकर एसीआई के कार्डियक थोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के पास पहुंचे। डॉ. साहू ने एंजियोग्राफी फिल्म को देखकर सर्जरी प्लान की। भर्ती होने के पांच दिन बाद मेरे भाई का ऑपरेशन हुआ और अब हम डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है।’ इस ऑपरेशन में विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ डॉ. निशांत सिंह चंदेल, एनेस्थेटिस्ट डॉ. अनिषा नागरिया एवं डॉ. अनिल गुप्ता, नर्सिंग स्टाफ में राजेन्द्र, चोवा राम व मुनेश तथा टेक्नीशियन भूपेंद्र की मुख्य भूमिका रही।

क्या है एओर्टिक डायसेक्शन

महाधमनी मानव शरीर की सबसे बड़ी और मुख्य धमनी होती होती है जो पूरे शरीर में रक्त का संचार करती है। कई बार धमनी की आंतरिक परत से रक्त का रिसाव (लीक) होने लगता है जिसे एओर्टिक डायसेक्शन या महाधमनी विच्छेदन के नाम से जाना जाता है। एओर्टिक डायसेक्शन एक गंभीर स्थिति है जिसमें धमनी की आंतरिक परत एंटाइमा (intima) में छेद होने के कारण रक्त का रिसाव आंतरिक परत एंटाइमा (intima) और मध्य परत मीडिया ( Media) के बीच होने लगता है। यही रक्त अगर महाधमनी के बाहरी दीवार से भी बाहर निकलने लगता है तो जानलेवा हो जाता है।

कैसे होती है यह बीमारी

डॉक्टरों ने बताया, यह बीमारी सामान्यत: 60 या 70 साल की अधिक उम्र में कोलेस्ट्रॉल जमने से होता है। नसों की जन्मजात बीमारी (मार्फेन सिंड्रोम) में भी कम उम्र के लोगों में भी यह हो सकता है। आंतरिक चोटों की वजह से भी ऐसा हो सकता है। अत्यधिक ब्लड प्रेशर की समस्या होने के कारण भी होता है परंतु किडनी के ठीक नीचे महाधमनी में डायसेक्शन बहुत ही दुर्लभ है। इस बीमारी में सबसे बड़ी समस्या इस बीमारी का पता लगाना होता है और इसका समय पर इलाज भी जरूरी है।

ऐसे हुआ इस बीमारी का ऑपरेशन

डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया, मरीज को इस बीमारी के हाई रिस्क होने के बारे में समझा दिया गया था। इसमें किडनी खराब होने और पैर के काले पड़ जाने का तथा पेट से नीचे लकवा का बहुत ही ज्यादा रिस्क होता है। मरीज को बेहोश किया गया, पेट को खोला गया पेट खोलने के बाद किडनी के ऊपर महाधमनी (सुप्रारीनल एओर्टा) को लूप किया गया जिससे आवश्यकता पड़ने पर ब्लड सप्लाई को कंट्रोल किया जा सके। खून पतला करने की इंजेक्शन देने के बाद किडनी के नीचे महाधमनी में क्लैम्प लगाकर रक्त प्रवाह को पूरा रोक दिया गया और बीमारी वाले महाधमनी के हिस्से को काटकर शरीर से अलग कर दिया गया तथा टियर को रिपेयर किया गया।

निकाले गये महाधमनी की जगह में 7×14 साइज का कृत्रिम नस ( आर्टिफिशियल ग्राफ्ट) जिसे वाई ग्रॉफ्ट कहते हैं, लगाया गया एवं दोनों पैरों की नसों से जोड़ दिया गया। यह जुड़ने से मरीज के दोनों पैरों में पुनः रक्त संचार प्रारंभ हो गया। ऑपरेशन के दौरान रक्त प्रवाह को लगभग 18 मिनट के लिए रोका गया, इस बीच किडनी एवं अन्य अंगों की रक्षा के लिए विशेष प्रकार की दवाई दी गई। कृत्रिम ग्राफ्ट लगाते समय यह ध्यान दिया गया कि पेट में स्थित अन्य अंगों को कोई नुकसान न हो। ऑपरेशन के बाद मरीज को 24 घंटे वेंटिलेटर में रखा गया तथा खून पतला करने की दवाएं दी गई तथा चार दिन तक केवल आईवी फ्लूड पर रखा गया। आज मरीज डिस्चार्ज होकर घर जाने को तैयार है।

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