प्रांतीय वॉच

कोरोना के चलतें लगातार दूसरें साल भी मूर्तिकारों को अब तक नहीं मिली बड़ी मूर्तियों के आर्डर, असमंजस में कलाकार

Share this

तिलकराम मंडावी/डोंगरगढ़ : कोरोनाकाल के चलतें लगातार दूसरें साल भी गणेषोत्सव का उत्साह भी फीका रहनें की संभावना है। क्योंकि अब तक मूर्तिकारों को समितियों ने अब तक बड़ी मूर्तियों का आर्डर नहीं दिया है। जबकि जून से ही बड़ी मूर्तियों का काम षुरू हो जाता है। इधर प्रषासन ने गणेषोत्सव को लेकर अब तक स्थिति साफ नहीं की है। जिस वजह से आयोजन समितियां भी रूचि नहीं दिखा रही है। कोरोना के चलतें विसर्जन झांकी भी नहीं निकलेगी। गणेष चतुर्थी से करीब तीन माह पहलें ही मूर्तिकारों को बड़ी मूर्तियों के आर्डर मिल जातें थे। परंतु कोरोनाकाल में अब तक आयोजन को लेकर न तो समितियों की बैठक हुई है और न ही मूर्तिकारों को आर्डर मिला है। मूर्तिकार असमंजस में है इसलिए बिना आर्डर पर छोटी मूर्तियां ही बना रहे है। बड़ी मूर्ति बनानें के बाद बिकेगी या नहीं इसकी गारंटी नहीं है, इसलिए मूर्तिकार रिस्क लेना नहीं चाह रहे। कोरोना का सीधा इफेक्ट मूर्तिकारों पर इसलिए भी पड़ा है क्योंकि भगवान गणेष की मूर्ति बनानें की षुरूआत होने के बाद दुर्गा, सरस्वती, षंकर व माता पार्वती की मूर्तियां बननी षुरू हो जाती है। साल की कमाई मूर्तियों के आर्डर से होती थी। परंतु कोरोना ने उनकी रोजी-रोटी भी छीन ली। षहर के वार्ड, 1, 3 व 16 में कुम्हारों का परिवार बसा है। जहां पर मूर्तियां लेने जिलें भर से लोग आतें है। इधर प्रषासन की पाबंदी के चलतें आयोजन समितियों ने भी अब तक रूचि नहीं दिखाई है। 10 सितंबर को गणेष चतुर्थी है। अब तक बड़ी मूर्तियों को आकार देने का काम षुरू हो जाता। लेकिन मूर्तिकार के परिवार खाली बैठे है। केवल छोटी मूर्तियों को अपनें रिस्क पर बनानें में लगें हुए है।

खास पहचानः षहर में मिट्टी से ही बनती है मूर्तियां- धर्मनगरी के मूर्तिकारों की खास पहचान इसलिए भी जानी जाती है क्योंकि यहां के कुंभकार केवल मिट्टी से ही मूर्तियां बनातें है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की प्रतिमा दूसरें षहरों से बनाकर लाई जाती है, परंतु यहां के मूर्तिकारों ने एक उद्देष्य रखा है कि वे काली मिट्टी से ही मूर्तियां तैयार करेंगे। इसलिए दूसरें ब्लॉक के लोग भी डोंगरगढ़ में मूर्तियां बनवातें है। षहर के मूर्तिकार प्रतिवर्श डेढ़-दो हजार छोटी-बड़ी मूर्तियां बेचतें है। भगवान गणेष की मूर्तियों का आर्डर सबसें अधिक होने की वजह से पूरें परिवार के लोग जुटें रहतें है। लेकिन खाली ही बैठे हुए है।

अप्रैल-मई में ही मिल जाती थी बड़ी मूर्तियों के आडर्र- मूर्तिकार बबला, युवराज, महेष, मिथुन, भैयाराम व कुमार ने बताया कि सीजन में भगवान गणेष की 10-12 फीट तक की प्रतिमा के आर्डर अप्रैल-मई में ही मिल जातें थे। परंतु अब तक बड़ी प्रतिमा बनानें एक भी आर्डर नहीं मिलें है। इसलिए वे अधिकतम 4 फीट तक ही प्रतिमा ही बिना आर्डर के बना रहे है। इसमें भी उनका ही रिस्क है, क्योंकि प्रतिमा बिकी नहीं तो मूर्तिकारों को ही नुकसान होगा। कोरोना ने गरीब मूर्तिकारों को बड़ा आर्थिक नुकसान दिया है। सालभर की कमाई वे मूर्तियां बनाकर ही करतें है। मूर्तियों को आकार देने में परिवार के लोग भी जुटें रहतें है। लेकिन अब घर पर ही खाली बैठे हुए है। पिछलें साल भी यहीं स्थिति थी।

भीड़ जुटना तय इसलिए झांकी निकलनें की उम्मीद नहीं- जिला मुख्यालय में विसर्जन झांकी के बाद डोंगरगढ़ में भी विसर्जन की रात नयनाभिराम झांकियां निकलती है। परंतु कोरोना के चलतें पिछलें साल झांकियों पर विराम रहेगा। भीड़ जुटनें से तीसरी लहर की पूरी आषंका है, इसलिए प्रषासन नहीं चाहेगा कि झांकी निकालनें से भीड़ जुटें और समस्या खड़ी हो। इसलिए लगातार दूसरें साल भी झांकी निकलनें की उम्मीद नहीं है। झांकी में मूर्तिकारों के अलावा लाइटिंग, डीजे समेत झांकियों में कार्य करनें वालें कर्मचारियों को बड़ा झटका लगेगा। गणेषोत्सव में हर साल लाखों रूपए की कमाई डेकोरेषन व डीजे वालें करतें थे।

दो दर्जन से अधिक चौराहों पर स्थापित होती है बड़ी मूर्तियां- धर्मनगरी के विभिन्न चौक-चौराहों में भगवान गणेष की बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती है। दो दर्जन से अधिक स्थानों पर रोजाना चहल-पहल रहती है। इसके अलावा घरों में भी मूर्ति स्थापना की जाती है। बड़ी मूर्तियां रखनें वाली समितियां ही विसर्जन झांकी का आयोजन करती है। रात में झांकी प्रदर्षित होने के बाद चुनिंदा झांकियां प्रदर्षन के लिए राजधानी रायपुर के लिए भी चुनी जाती है। इसके अलावा ग्रामीण अंचलों में मां दुर्गा, सरस्वती, षिव तथा पार्वती की मूर्तियां भी डोंगरगढ़ से ही ले जाया जाता है। लेकिन कोरोना की ऐसी मार पड़ी है कि मूर्तिकारों के साथ-साथ इससें जुड़े लोगों की भी रोजी-रोटी छीन गई है।
13-15 लाख तक केवल झांकियों में होते है खर्च- गणेष विसर्जन की झांकियों में एक रात में ही 13-15 लाख रूपए खर्च होता है। प्रत्येक समिति प्रतिस्पर्धा देने के लिए लाखों रूपए खर्च करके झांकियां तैयार करती है। इससें कई मूर्तिकारों के अलावा अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया होता है। जिला प्रषासन के आदेष के बाद स्थानीय प्रषासन समितियों की मीटिंग लेकर स्थापना के संबंध में दिषा-निर्देष देगा। कोरोनाकाल में प्रषासन के निर्णय अनुसार ही स्थापित होंगे।

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *