प्रांतीय वॉच

प्रतिवर्ष किसान को बेवकूफ बनाकर जहर परोसती हैं खाद कम्पनिया : किशोर

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संजय महिलांग/नवागढ़ : जहर युक्त खाना कंपनी तैयार करवाती हैं ताकि आप बीमार हों… अगर आप बीमार नहीं हुए तो अंग्रेजी दवाई कैसे बिकेंगी उक्त बातें युवा किसान किशोर राजपूत ने कही उन्होंने बताया कि देश में*19 खरब 50 अरब 40 करोड़ का सालाना व्यापार बस हम सब को बीमार बनाने के लिऐ हो रहा है।

बौद्धिक लड़ाई ना एक दिन में लड़ी जाती और ना जीती जाती, इस के लिए तो सैकड़ों साल लगते हैं और पीढियाँ की पीढियाँ खप जाती हैं। एक बौद्धिक लड़ाई है जैविक कृषि बनाम रसायनिक कृषि और अंत में विजय जैविक खेती की ही होनी है कंपनियां चाहे जो मर्जी कर लें।

बुद्धि का विकास शिक्षा से ही होता है और वो शिक्षा ही गलत दे दी जाए तो कोई कहाँ जा कर रोए।

आप सभी गेहूँ व चावल तो खाते ही होंगे। आज इन दो फसलों के बारे में ही बात करूँगा। जब देश में कृषि विश्व विद्यालय नहीं थे तो जैविक कृषि ही होती थी, जब देश में वन विभाग नहीं थे तो जंगलों में अनेक प्रकार के देशी पेड़ पौधे थे, जब देश में पशुपालन विभाग नहीं था तो उत्तम नश्ल की गाय, अन्य पशु व विभिन्न प्रकार के पक्षी थे।

खैर आज बस गेहूँ और चावल।
गेहूँ का बीज आज हमें बाजार में मिलता है, उस पर अंग्रेजी भाषा में साफ साफ लिखा होता है कि यह गेहूँ खाने योग्य नहीं है, इस पर जहर की परत चढ़ाई गयी है।
यह जहर युक्त गेहूँ का बीज किसान को करीब 1000/- ₹ में 50 किलो प्रति एकड़ बोने के लिए दिया जाता है।
फिर बुआई के समय सुपर फास्फेट नामक जहर की 50 किलो की बोरी करीब 400/- ₹ की थमा दी जाती है।
गेहूँ के अंकुरित होते ही यूरिया की एक बोरी 350/- ₹ की तथा दूसरी सिंचाई के वक्त एक बोरी यूरिया और डालवा दी जाती है।
500 से 1000/- ₹ के खरपतवार व कीटनाशक डलवाया जाता है।
जब गेहूँ पक जाता है तो सल्फास नामक जहर उस को सुरक्षित रखने के नाम पर डलवाया जाता है।
कहने का मतलब है कि किसान को पूरी तरह ठग कर उस को जहर युक्त बीज देने से लेकर गेहूँ को सुरक्षित रखने के उपाय तक कंपनी किसान से करीब तीन हजार रुपए प्रति एकड़ का जहर बेच जाती है।
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अब चावल की बात करते हैं।
चावल की 10 किलो की जहर से उपचारित पंजीरी प्रति एकड़ 400 से 500/- ₹ किसान को दी जाती है।
पौध रोपण के साथ ही 3000/- ₹ की तीन बोरी डीएपी की डलवाई जाती हैं।
बाद में एक बोरी यूरिया, एक से दो 500/- ₹ के खरपतवार नाशी जहर तथा तीन 1500/- ₹ के कीटनाशक जहर के छिडकाव करवाए जाते हैं। चावल की फसल में भी कंपनी करीब 6000/- ₹ के जहर प्रति एकड़ डलवाने में सफल हो जाती है।

सिर्फ गेहूँ व चावल में जहर डलवाने के नाम पर कंपनी 9000/- ₹ प्रति एकड़ का सामान बेच जाती है।
भारत में 3946 लाख एकड़ कृषि भूमि है जिसमे से 2156 लाख सिंचित भूमि पर गेहूँ व चावल की खेती होती है।
215600000 x 9000 = 1950400000000/- ₹ प्रति वर्ष किसान को बेवकूफ बनाकर आप को जहर युक्त खाना कंपनी तैयार करवाती हैं ताकि आप बीमार हों अगर आप बीमार नहीं हुए तो अंग्रेजी दवाई कैसे बिकेंगी?????

कितने किसान स्त्री पुरूष यह कीटनाशक, खरपतवार नाशक व सल्फास पी खा कर मरे हैं इस का आँकड़ा आप को कहीं नहीं मिलेगा क्यों कि ज्यादातर परिवार इस की जानकारी थानों में नहीं देते।

*अंत में अपने शहरी मित्रो से अपील करना चाहूँगा कि फैमिली डॉक्टर के साथ साथ एक फैमिली फार्मर भी रख लो।
जैसा खाए अन्न वैसा होगा मन।*

नोटः- 19 खरब 50 अरब 40 करोड़ ₹ तो सालाना गेहूँ व चावल को खराब करने के लिए खर्च किया जाता है।
बाकी अन्न, फल व सब्जियों को खराब करने वाले पैसे की आप कल्पना कर सकते हैं।

ये तो मात्र 30% है।
अन्य फसलों में 70% कैमिकल फर्टिलाइजर इस्तेमाल होते हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना जहर हम खा रहे है।

इनसे बचने के लिए हमें गौ वंश आधारित खेती को अपनाना होगा तभी सही मायनों में हम सब स्वस्थ रहेंगे धरती स्वस्थ रहेगी और पर्यावरण स्वस्थ रहेगा

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