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सुख और दुख दो एक ऐसी पहेली जिस को सुलझाने में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन गए: स्मृति ठाकुर

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महेन्द सिंह/पांडुका/श्याम नगर/नवापारा/राजिम : 26 मई भारत की नहीं पूरे विश्व समुदाय के लिए विशेष दिन है;कारण इस दिन सदियों पूर्व भारत के क्षत्रिय राजा शुद्धोधन एवं उनकी धर्मपत्नी महामाया के यहां छठी शताब्दी में युवराज सिद्धार्थ का जन्म हुआ ।शुरू से धीर गंभीर युवराज सिद्धार्थ हमेशा एकांतवास में विचार करते रहते थे ,जिसे देखकर इनके पिता शुद्धोधन ने रथ में सारथी के साथ मन बहलाने हेतु नगर भ्रमण के लिए भेजा वहां उन्होंने एक बीमार; वृद्ध ,युवा और मृत व्यक्ति के अर्थी को देखा वहीं से इनको सुख और दुख का मर्म जानने की इच्छा इनके अंदर प्रेरणा जागृत हुई ,उन्होंने सारा राजपाट त्याग कर सत्य की खोज में और जीवन का अर्थ समझने के लिए संन्यास का रास्ता अपनाया,उक्त बातें गरियाबंद जिला की मुखर  जिला पंचायत अध्यक्ष स्मृति ठाकुर ने कही।  उन्होंने 26 मई गौतम बुद्ध जयंती के अवसर पर पूरे जिले एवं प्रदेश वासियों को बधाई देते हुए कहा गौतम बुद्ध ने कठिन तपस्या कर दुख निवारण का मार्ग आम जनता के लिए प्रशस्त  किया है । मानव जाति के लिए दुख से  परे हृदय, मस्तिष्क और नए दृष्टि का अद्भुत आविष्कार किया। बुद्ध ने सिद्ध किया कि अगर दुख है तो उसका कारण भी होता है जिसका सहज सरल समाधान भी किया जा सकता है ।बुद्ध ने बहुत सीधी और सरल जीवनशैली अपनाएं । उन्होंने अपने विचार किसी पर थोपे नहीं ,किसी से  शास्त्रार्थ करने में उनकी रुचि नहीं थी इसलिए उन्होंने प्रश्न अपने आप से किए और उत्तर भी मिल जाने तक धैर्य रखा। बुद्ध ने तपस्या की वहीं शैली अपनाई, जो वैदिक ऋषियों की थी । सन्यास का रास्ता चुना जो पुराणों में दिखाया गया। जीवन के सत्य को समझने के लिए उन्होंने जो पगडंडी बनाई वह सनातन धर्म द्वारा अनुमोदित थी ,किंतु वह मिथ्या आडंबर नहीं था। प्रचलित विश्वासों को मानने की बाध्यता नहीं थी । उन्होंने रीति-रिवाजों को जबरदस्ती बनाए रखने की विवशता  भी नहीं की थी जो मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद के स्मारक बने खड़े थे। बुद्ध ने कभी किसी का विरोध नहीं किया ,किसी के ऊपर छींटाकशी नहीं की। बुद्धम शरणम गच्छामि ।।धम्मम शरणम गच्छामि।। सदा सदा के लिए सत्य हो चुका है गौतम बुद्ध  का मार्ग और आचरण बौद्ध धर्म है जिसे शत-शत नमन है।

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