(रायपुर ब्यूरो ) | आचार्य पं रमाकांत शर्मा प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक धर्म एवं अध्यात्म के अच्छे जानकार हिंदी भाषा के प्रबल पक्षधर , यशस्वी कवि एवं वक्ता तथा साहित्य सर्जक रहे | पंडित शर्मा का छत्तीसगढ़ी , हिंदी , संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार था | पंडित शर्मा समजसेवा के साथ छत्तीसगढ़ महतारी का यश अपनी बहुआयामी साधना से चहुं ओर प्रसारित किया और माटी के सच्चे सपूत होने का ऋण चुकाया l
पंडित शर्मा साहित्य मनीषी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी मानस मर्मज्ञ डॉक्टर बलदेव प्रसाद मिश्र एवं गजानन माधव मुक्तिबोध एवं छायावाद के प्रवर्तक पंडित मुकुटधर पांडे जैसे छतीसगढ के माटी के सपूतों से प्रेरणा और सानिध्य ने पंडित शर्मा को साहित्य साधना के साथ शिक्षा , धर्म , अध्यात्म , समाजसेवा के क्षेत्र में लगातार काम करते रहें एवं अपने सामाजिक काम करते हुए अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया l
छुईखदान हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष के रूप में अपने 3 दशक के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ सहित तत्कालीन मध्यप्रदेश के कवि , पूर्व राज्यसभा सांसद एवं गीतकार बालकवि बैरागी , अंचल के ख्याति नम कवि श्री दानेश्वर शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ महादेव प्रसाद पांडे , महशूर छत्तीसगढ़ी गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया , डॉ रतन जैन साहित्य सर्जक तथा प्रखर पत्रकार शरद भाई कोठारी से सतत् संपर्क रहा और साहित्य सृजन में प्रोत्साहन मिलता रहा |
अपनी बाल अवस्था से ही वे राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय रहे | शासकीय सेवा में आने के बाद तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ , शिक्षक संघ , के विभिन्न दायित्व में तहसील , जिला एवं प्रदेश स्तरीय दायित्व को बखूबी निभाया आचार्य पं रमाकांत शर्मा शिक्षा , साहित्य एवं अध्यात्म की त्रिपथ गामि धारा में अपने व्यक्तित्व को पल्लवित और पुष्पित किया |
आचार्य पं रमाकांत शर्मा का जन्म 10 दिसंबर 1936 में हुआ | श्री शर्मा गौरव ग्राम चचेड़ी के प्रतिष्ठित मालगुजार पंडित गंगा प्रसाद तिवारी के पौत्र एवं पं लालजी तिवारी के ज्येष्ठ पुत्र थे l पंडित शर्मा के पिता पंडित लालजी तिवारी गांव के मालगुजार एवं प्रसिद्ध समाजसेवी थे l पंडित शर्मा प्रारंभ से ही आपने शिक्षा को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और अपने अध्ययन एवं अध्यापन काल के प्रारंभ में साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी से संपर्क हुआ और उनके सामीप्य भी उन्हे मिला पंडित शर्मा बख्शी के प्रेरणा से आजीवका के लिए शिक्षकिय कार्य प्रारंभ किया |
7 जून 1957 को देवादा के प्रतिष्ठित मालगुजार पंडित बनमाली प्रसाद दुबे की बड़ी पुत्री रामप्यारी दुबे के साथ परिणय सूत्र में बंधे | पंडित शर्मा के 3 पुत्र एवं एक पुत्री , शरद , हेमंत , शिशिर एवं वासंती के रूप में हुए | सन् 1955 से 30 अप्रैल 1997 को 42 वर्षों की शासकीय सेवा कर सेवानिवृत्त हुए | शासकीय सेवा के दौरान उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा 1964 में सागर विश्वविद्यालय एवं 1966 में उन्होंने बी.एड और 1968 में रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर से हिंदी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की l उसके पश्चात 1974 में आपने एम.एड की उपाधि शासकीय शिक्षण महाविद्यालय बिलासपुर से प्राप्त की इस बात से पंडित शर्मा का शिक्षा और स्वाध्याय की रूचि का अंदाज लगाया जा सकता है |
शासकीय सेवा के दौरान ही अपने उच्च शिक्षा की पूरी पढ़ाई निरंतर जारी रखी l पंडित शर्मा ने एक साहित्यकार के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी | छुईखदान नगर में उन्होने हिंदी साहित्य समिति को पुनर्जीवित कर वे सन 1968 से लगातार 1997 तक अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया l इस कार्यकाल में पंडित शर्मा हिंदी साहित्य समिति छुईखदान की 1973 में रजत जयंती मनाई इस अवसर पर पहली बार अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन छुईखदान में किया गया | पंडित शर्मा की कविताएं ,निबंध एवं समसामयिक लेख प्रतिष्ठित पत्र पत्रिका में समय समय पर प्रकाशित होती रही l सेवानिवृत्त के उपरांत आप का झुकाव अध्यात्म की ओर तेजी के साथ बढ़ा धर्म एवं अध्यात्म कि ओर झुकाव के चलते पंडित शर्मा ने विभिन्न पुराणों पर विश्लेषणात्मक प्रवचन सहित भागवत महापुराण की कथा प्रवाचक के रूप में उन्होने अल्प समय में ही अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया l
आचार्य पंडित रमाकांत शर्मा अपने अध्ययन काल से ही प्रख्यात शिक्षाविद एवं साहित्यिक समाजिक एवं सांस्कृतिक सेवाओं में रचे बसे मनिशिओ के निकट रहे आप श्रीमद् भागवत एवं राम कथा प्रवाचाक व यज्ञाचार्य के रूप में प्रतिष्ठत रहे l पंडित शर्मा अपने जीवन काल में अनेक जरुरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षा रूपी संस्कार देने में कभी पीछे नहीं हटे और आजीवन विद्या बाटने का काम करते रहें l पंडित रमाकांत शर्मा गुरु शब्द की गरिमा को जीवन में उच्च स्थान दिलाकर आप ने शिष्यों के मनोभाव को क्रमिक विन्यास देकर उन्हें पल्लवित किया है l सहजता और त्याग से आपने जीवन को गुरूता दी है l राष्ट्र चेतना के उन्नयन में आपने अविस्मरणीय योगदान देकर गुरु को राष्ट्रनिर्माता के रूप में सार्थक किया है l पंडित शर्मा शिक्षक रहते हुए अपनी कुशल संगठनात्मक क्षमता का परिचय देते हुए कर्मचारियों एवं शिक्षकों को संगठित कर उन्हे अपने हीअधिकारों एवं कर्तव्यों का बोध कराते हुए अन्याय का प्रतिकार करने एवं न्याय के लिए संघर्षरत रहने की प्रेरणा देते रहे l मृत्यु संसार का शाशवत सत्य है जन्म लेने वाले हर प्राणी को एक दिन संसार का त्याग करना ही पड़ता है l जब तक श्री शर्मा इस संसार में रहें तब तक कर्मयोगी बनकर जिये और 12 मई 2021 शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ब्रम्हमुहूर्त में ब्रह्मलीन हुए | घर , परिवार , गांव नगर तथा क्षेत्र के हजारों लोगों को छोड़ परमात्मा के श्री चरणों में समा गए |