*अक्ति पर्व पर विशेष*
रायपुर l प्रकृति, जिसकी गोद में हम पलते और बढ़ते हैं , उस प्रकृति में बहुत कुछ है । प्रकृति हमें सह अस्तित्व सीखाती है। बच्चे भी इस दिशा में सोचने लगे हैं। वे पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं। शहर में कई स्थानों पर बड़ों के साथ बच्चे भी पशु – पक्षियों के लिए भोजन पानी रख रहे हैं। अक्ति के पर्व का पक्षियों के साथ हमारे व्यवहार में समन्वय का संदेश छिपा है। बच्चे यदि इन्हीं बातों से खेल-खेल में जुड़ते जाए तो प्रकृति की सुंदरता यूं ही निखरती रहेगी। ऐसे ही डंगनिया के सीएसीईबी परिसर के बच्चे हैं। पेड़ पौधों से भरे इस परिसर में पक्षियों की भरमार होती है। यहाँ के बच्चे इनके लिए दाना और पानी पेड़ों पर रखते हैं। आठवीं में पढ़ने वाली प्रिशा शर्मा कहती है कि चिड़ियों की चह-चहाहट सुनना बड़ा अच्छा लगता है। हम हमेशा सुन सकें, इसलिए इन्हें बचाना भी जरूरी है। इन्हीं में से सातवीं कक्षा मे पढ़ने वाले कुबेर शर्मा बताते हैं कि इन पेड़ों में हम पक्षियों और गिलहरियों के लिए दाना रखते हैं। बड़ी संख्या में गिलहरियों को यहाँ दौड़ते भागते देखकर खूब मजा आता है। यहाँ कोयल, बुलबुल, समेत कई अन्य प्रजाति के पक्षी आते हैं।चौथी में पढ़ने वाले सदाशिव शास्त्री चहकते हुए बताते हैं कि पापा रोज़ पेड़ों में पानी डालते हैं और पक्षियों के लिए दाना और पानी डालने का काम हम लोग करते हैं। चिड़ियों को असुविधा न हो इसलिए दाना और पानी का पात्र पेड़ों पर लटकाकर रखा गया है। कुछ पात्र पेड़ की छाँव में नीचे भी रखे गए हैं। इनमें पक्षी,गिलहरी और बिल्लियों को पानी पीते देखते हैं।प्रिशा ने बताया कि हमने दाना-पानी रखने के लिए घर के अनुपयोगी सामानों का प्रयोग किया है। सीडी कव्हर बाक्स , इंजन ऑयल के डिब्बे, अनुपयोगी घड़े, अन्य प्लास्टिक के डिब्बों का उपयोग कर पक्षियों के लिए व्यवस्था की गई है। पेड़ों पर इन्हें टांगकर रखा जाता है जिससे पक्षी बेहिचक पानी पी सके और दाना चुग सकें। इन पात्रों को ऊपर टांगने के लिए रस्सी का उपयोग किया जाता है जिससे प्रतिदिन चढ़ाने और उतारने में कठिनाई न हो। सदाशिव कहते हैं कि दादा- दादी भी बहुत पेड़ लगाते हैं और हर दिन उनकी सेवा में लगे रहते हैं इसलिए हम लोग इन पक्षियों का ध्यान रखते हैं जैसे ये पक्षी हमें हर सुबह चह-चहाहट कर उठाती हैं। कोयल की सुरीली आवाज़ बड़ी अच्छी लगती है। कुबेर कहते हैं हमें ये सब करके बड़ा आनंद आता है। भले ही हम प्रकृति की अधिक सेवा नहीं कर सकते पर थोड़ा प्रयास तो कर ही सकते हैं..।