कोलकाता : पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ऐतिहासिक जीत की ओर कदम बढ़ा चुकी है. टीएमसी यहां 200 से ज्यादा सीटों पर आगे चल रही है. इस बीच अब हर किसी की नज़र नंदीग्राम पर टिकी थी. इस हाईप्रोफाइल सीट पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जीत हुई है. ममता बनर्जी ने बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी को 1200 वोटों से हराया है. ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी के बीच आखिरी राउंड तक जंग चली. शुरुआती राउंड में शुभेंदु अधिकारी बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन आखिरी राउंड्स में ममता ने बाजी पलट दी.
बंगाल में जीत के बाद क्या बोलीं ममता?
पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ममता बनर्जी सभी के सामने आईं. ममता के पैर में लगा प्लास्टर हट गया है और यहां उन्होंने मंच से संबोधित करते हुए कहा कि जय बंगाल, बंगाल ही कर सकता है. ममता ने कार्यकर्ताओं से मास्क लगाने और शांति से घर लौटने की अपील की.नंदीग्राम बंगाल की सबसे हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही थी, जहां एक अप्रैल को 88 फीसदी मतदान हुआ था. यहां पर टीएमसी प्रमुख मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बीजेपी से शुभेंदु अधिकारी आमने-सामने थे. लेफ्ट से मीनाक्षी मुखर्जी मैदान में थीं.इस सीट को जीतने के लिए ममता और शुभेंदु ने कोई कसर नहीं छोड़ी. हालांकि, यह सीट लंबे समय तक लेफ्ट के पास रही है, लेकिन नंदीग्राम भूमि आंदोलन के बाद से टीएमसी अपना वर्चस्व बरकरार रखे हुए है.
पूर्व सहयोगी ने दी टक्कर
पांच जनवरी 1955 को कोलकाता में जन्मीं ममता बनर्जी अपने संघर्ष, सादगी और ‘मां, माटी और मानुष’ के नारे के सहारे 2011 में पश्चिम बंगाल में लेफ्ट दुर्ग को ढहा कर राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. पांच साल बाद वे पहले से ज्यादा बड़ी ताकत बनकर उभरीं और दूसरी बार सीएम बनीं. तीसरी बार सीएम बनने का सपना लेकर ममता इस बार नंदीग्राम सीट से मैदान में उतरी थीं. जहां उनके पुराने साथी ने ही उन्हें टक्कर दी.
नंदीग्राम आंदोलन से मिली ममता को पहचान
नंदीग्राम सीट एक दौर से लेफ्ट के मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन नंदीग्राम के जमीन आंदोलन ने सिर्फ क्षेत्र की नहीं बल्कि प्रदेश की सियासत को ही पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. यहां पर टीएमसी का दस साल से कब्जा है, लेकिन बीजेपी के टिकट से शुभेंदु अधिकारी के उतरने से ममता बनर्जी के लिए कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. हालांकि, ममता बनर्जी ने नंदीग्राम की सियासी जंग फतह करने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी, क्योंकि इसी नंदीग्राम आंदोलन से ममता को सियासी पहचान मिली.
पिछले दशकों की राजनीति में नंदीग्राम आंदोलन को हथियार बना कर ही वर्तमान सीएम ममता बनर्जी ने लेफ्ट को अपदस्थ करने में सफलता पाई थी. 2007 में तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने सलीम ग्रुप को ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था.
राज्य सरकार की योजना को लेकर उठे विवाद के कारण विपक्ष की पार्टियों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई. टीएमसी, जमात उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (BUPC) का गठन किया गया और सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया. इस आंदोलन का नेतृत्व तत्कालीन विरोधी नेत्री ममता बनर्जी कर रही थीं और उनके सिपहसलार बनकर शुभेंदु अधिकारी उभरे थे.
नंदीग्राम सीट का सियासी इतिहास
नंदीग्राम सीट पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे को देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे. 2011 में भी यहां मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी. और सबसे बड़ी बात कि जीत-हार का अंतर 26 फीसदी था. वहीं, 2016 के विधानसभा चुनाव में शुभेंदु अधिकारी ने इस सीट पर सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से मात दी थी. उस वक्त शुभेंदु को यहां कुल 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे.
बीस साल बाद टीएमसी से शुभेंदु जीते
बता दें कि नंदीग्राम सीट पर 1996 में कांग्रेस के देवीशंकर पांडा के बाद 2016 में टीएमसी से शुभेंदु अधिकारी जीतने वाले हिंदू नेता थे. इस बीच यहां से जीतकर विधायक बनने वाले सभी मुस्लिम थे. 2006 के विधानसभा चुनाव में भाकपा के इलियास मोहम्मद विजयी हुए. उन्हें 69,376 वोट मिले थे. इलियास ने टीएमसी के एसके सुफियान को हराया था. 2011 में नंदीग्राम सीट से फिरोजा बीबी को टीएमसी के टिकट पर जीत मिली थी. 2009 के उपचुनाव में इस सीट पर टीएमसी की फिरोजा बीबी विजयी हुईं. 2009 के उपचुनाव में टीएमसी ने लेफ्ट से इस सीट को छीना था और 2011 और 2016 में इस पर कब्जा बनाए रखा.