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नरवा में प्रगति की समीक्षा इस बात से होगी कि भूमिगत जल का स्तर बढ़ने से किसान को दूसरी फसल लेने में सहयोग मिलने लगे

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  • नरवा योजना में स्थानीय लोगों का भी लें सहयोग, ये योजना बदल देगी खेती की तकदीर
  • कलेक्टर ने समीक्षा बैठक में कहा कि नरवा योजना का उद्देश्य भूमिगत जल का स्तर बढ़ाना, अच्छी मानिटरिंग से योजना होगी सफल

तापस सन्याल/ दुर्ग : कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने कलेक्ट्रेट स्थित सभाकक्ष में जिले में चल रही नरवा योजना की विस्तृत समीक्षा की। उन्होंने जिले के 29 नालों में स्वीकृत किये गए 980 कार्यों की प्रगति के बारे में विस्तार से समीक्षा की। कलेक्टर ने कहा कि नरवा योजना शासन की सबसे अहम योजना है। इसमें तकनीकी रूप से सही जगहों पर बेहतरीन स्ट्रक्चर बनाना जरूरी है ताकि रिज टू वैली योजना के अंतर्गत नालों का प्रवाह धीमा हो और पानी भीतर रिसे जिससे भूमिगत जल का स्तर उठ सके। उन्होंने कहा कि योजना की सफलता इस बात से नहीं नापी जाएगी कि आपने कितने स्ट्रक्चर बनाये। यह तो इस बात से मापी जाएगी कि इन स्ट्रक्चर से भूमिगत जल का स्तर सुधरा और क्षेत्र के किसान दूसरी फसल लेने लगे। जलस्तर में थोड़ी भी बढ़ोत्तरी किसानों के लिए संजीवनी लेकर आती है। कलेक्टर ने कहा कि उदाहरण के लिए चना लीजिए। चना में केवल एक बार का पानी लगता है। इस तरह के कार्य किये जाने के लिए जनसहयोग भी बेहद अपेक्षित होता है। जनता के बीच जाइये, उनका फीडबैक लीजिए। पुराने लोग नालों के कोर्स के अच्छे जानकार होते हैं। उन्हें लेकर किया जाने वाला कार्य ज्यादा उपयोगी साबित होगा। उन्होंने कहा कि नरवा योजना में ऐसे स्ट्रक्चर तैयार किये जाने हैं जिनसे रिज टू वैली योजना अंतर्गत पानी का प्रवाह मद्धम हो, इससे पानी भीतर रिसेगा और जमीन में नमी भी अच्छी रहेगी। उन्होंने कहा कि इस बार सारे स्ट्रक्चर तैयार हो जाएंगे तो अगली रबी क्राप में इसका असर दिखने लगेगा। कलेक्टर ने कहा कि यह व्यापक मानिटरिंग की जरूरत वाला काम है। कई किमी तक फैले नालों में यह कार्य होगा, इसके लिए अधिकारियों को काफी समय देना होगा, साथ ही गाँव वालों का सहयोग भी लेना होगा। अधिकारियों ने बताया कि अभी कई जगहों पर छोटी-छोटी संरचनाओं के साथ ही डिसेल्टिंग और डीपनिंग के कार्य पूरे किये जा चुके हैं। कलेक्टर ने इस मौके पर गौठानों में वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन, गोबर विक्रय तथा अन्य गतिविधियों की समीक्षा भी की। उन्होंने कहा कि गौठानों को आत्मनिर्भर बनाना है। उन्हें आजीविकामूलक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित करना है। इसके लिए नवाचार बेहद जरूरी हैं। वर्मी कंपोस्ट की बिक्री के लिए प्रोफेशनल एप्रोच जरूरी है। शहरों में निजी लोगों को भी इसका विक्रय किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गोधन न्याय योजना की सफलता के लिए अनिवार्य पैरादान, जानवरों की उपस्थिति, गोबर क्रय तथा वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन एवं स्व-सहायता समूहों की नियमित गतिविधि बेहद आवश्यक है। सभी अधिकारी इसकी नियमित रूप से मानिटरिंग करें। बैठक में भिलाई निगम आयुक्त श्री ऋतुराज रघुवंशी, जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक, अपर कलेक्टर श्री प्रकाश सर्वे, श्री बीबी पंचभाई सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

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