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आईटीबीपी के एक और जवान ने की खुदकुशी, जवान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का रहने वाला

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दिलीप सिंह/ कोंडागांव: नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों के आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शुक्रवार को एक और आईटीपीबी 29 बटालियन के जवान ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली है. उरन्दाबेड़ा कैंप से कुछ जवान गश्त पर निकले थे. इस दौरान सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले जवान मोनू सिंह खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली. फिलहाल जवान के इस कदम उठाने के पीछे के कारणों का पता नहीं चल पाया है. गुरुवार को ही नारायणपुर के फरसगांव क्षेत्र में आईटीबीपी 29 बटालियन के ही जवान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. जवान का नाम भूपेश सिंह था. भूपेश उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ का रहने वाला था. वो फरसगांव थाने के कैंप में पदस्थ था. भूपेश एक महीने पहले ही छुट्टी से वापस लौटा था. गुरुवार को ड्यूटी से वापस कैंप जाने के बाद जवान ने शौचालय में फांसी लगा ली. उसके शव को आनन-फानन में जिला अस्पताल नारायणपुर लाया गया. आत्महत्या के कारणों का अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है. पुलिस मामले में आगे की जांच कर रही है. डिप्रेशन में जा रहे जवान लगातार आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं. खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों को ज्यादा मानसिक तनाव में देखा जा रहा है. 2019 में प्रदेश के 36 जवानों ने आत्महत्या की थी. पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, साल 2007 से साल 2019 तक की स्थिति के मुताबिक सुरक्षा बल के 201 जवानों ने आत्महत्या की है. इसमें राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान भी शामिल हैं. मिलिट्री साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर वर्णिका शर्मा ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था का पूरा दायित्व सुरक्षाबलों की जवाबदेही होती है. केंद्र और राज्य शासन से अनुमोदित सुरक्षा बल ये काम करते हैं. संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में दायित्व निर्वहन अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण होता है. नक्सलियों के कोवर्ट वॉर से जवानों पर फियर एंड शॉप का दबाव होता है. सघन भौगोलिक दशा तनाव के प्राथमिक कारण होते हैं. इसके अलावा हर रोज से जुड़ी कई समस्याएं हैं, उन्हें लेकर अधिकारियों से सामंजस्य की कमी होना भी शामिल है. इसके अलावा सामान्य पारिवारिक जनजीवन से दूरी और संपर्क का अभाव तनाव का मुख्य कारण होता है.

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