टीकम निषाद/ देवभोग : अक्सर शासकीय अस्पताल के डिग्री धारी डॉक्टर जिस बीमारी का प्राथमिक तौर पर लक्षण दिखाई पड़ता है। उससे संबंधित ब्लड मल मूत्र सहित अन्य का अस्पताल मैं शासकीय चार्ज लेकर जांच कराते हैं ।लेकिन मुख्यालय के निजी क्लीनिक से निकले मरीजों को मल मूत्र शुगर सहित ब्लड के तरह तरह टेस्ट कराने के लिए लिखा जाता है। वह इसलिए नहीं की मरीज का वास्तविक इलाज हो सके बल्कि जांच इसलिए कराने के लिए कहा जाता है ।ताकि उसका कमीशन लेकर अपनी आमदनी बढ़ाया जाए। ऐसे ही मुख्यालय के झोलाछाप डॉक्टरों के बीच देखने और सुनने को मिलता है । जो आम मरीजों को शासकीय अस्पताल में चंद पैसों से जांच हो सकता है। उसके लिए प्राइवेट पैथोलॉजी भेजा जाता है। जिसके चलते मरीजों को हजारों रुपए रुपए का अधिक खर्च उठाना पड़ता है। मरीजों की माने तो मलेरिया पैरासाइट टाइफाइड कंपलीट ब्लड काउंट यूरिन इन्फेक्शन शुगर ब्लड ग्रुप का सामान्य तौर पर निजी क्लीनिक से निकलने के बाद जांच कराना होता है ।जिसमें 500 से अधिक रुपए लग जाते है। जबकि यह टेस्ट शासकीय अस्पताल में 150 से 200 के बीच आसानी से होता है। लेकिन अपनी कमाई के लिए झोलाछाप डॉक्टर प्राइवेट पैथोलॉजी पर मरीजों को भेजते हैं। और ऐसे दिन भर में करीब 300 से ज्यादा मरीज बिना डिग्रीधारी डॉक्टर के झांसे में आकर शारीरिक नुकसान के साथ आर्थिक नुकसान भी उठाते है । सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सामान्य जांच के आधार पर महंगी एवं हाई डाेज से इलाज भी करते हैं। जिसके चलते मरीजों की जान पर आफत पडते देखा जा सकता है और अंतिम समय शासकीय अस्पताल एवं राजधानी के स्वास्थ्य के भरोसे रेफर कर देते हैं। यही वजह है कि क्षेत्र के अधिकांश लोगों में बिना डिग्रीधारी डॉक्टरों के खिलाफ काफी आक्रोश व्याप्त है। क्योंकि पैसा गवाने के साथ साथ जिंदगी को भी दांव पर लगाना पड़ता है। जिससे स्थानीय अधिकारी से लेकर जिला स्वास्थ्य अमला भी अच्छी तरह वाकिफ है। लेकिन पखवाड़े भर पहले कार्यवाही करने की बात कह कर एक दूसरे के ऊपर कार्यवाही का जिम्मा सौंप देते हैं। जिसे लेकर झोलाछाप डॉक्टरों एवं जिम्मेदार अधिकारियों के बीच सांठगांठ के मायने क्षेत्र के लोगों द्वारा निकाला जाता है।
एनआर नवरत्न सीएचएमओ गरियाबंद –: प्रशासनिक अधिकारियों को भी अवगत कराइए ताकि संयुक्त रूप से कार्रवाई हो सके और अपने स्तर पर भी झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ कार्यवाही जल्द शुरू किया जाएगा

