महेन्द्र सिंह / पाण्डुका/नवापारा राजिम : सत्वीकता से भरा- प्रकृति के प्रदत्त संसाधान को देवत्व का प्रतीक मानकार उसी के माध्यम से अपनी प्राचीन परम्परा का शानदार पालन करते हुये पाण्डुका से 15 कि.मी. दूर वन्य ग्राम बारूका में छ.ग. शासन के एडीशनल सेल्स टैक्स कमिश्नर तोरण लाल धु्रव एंव छ.ग. कैडर के आई ए एस देवेश कुमार धु्रव के नव निर्मित भव्य मकान में गोड़ समाज की परम्परा अनुसार पौराणिक पवित्र वाद्य यंत्र तुरही की मंगल ध्वनि के बीच दिनांक 10/1/2021 को पुरखो के प्रतीक दुल्हा देव एंव दुलहिन दाई के रूप में श्रृंगार करके गृह प्रवेश की शानदार रस्म अदा की गई। जिसका साक्षी आदिवासी समाज के साथ आमंत्रित सर्व समाज के साथ सी जी वॉच प्रमुख महेन्द्र सिंह ठाकुर भी बने। विविध परम्परा का हमारे जीवन ा शैली में विशेष महत्व- उक्त पूजा मंें पुजारी के रूप में पधारे जिन्हे गोड़ी भाषा में गायता कहा जाता है। मदन लाल उइके ग्राम पनिया जेब डोंगरगढ़ एंव महिला गायता के रूप मंे राजनांदगांव के गवर्नमेण्ट 10वी ,12वी स्कूल में संस्कृत की व्याख्याता श्रीमती सुशीला नेताम ने बताया कि सभी आदिवासी समुदाय में अपनी परम्परा के हिसाब से पूजन एंव देव स्तुति की जाती है जिसे गोड़ी भाषा में गोंगो करना कहा जाता है। गृह प्रवेश में घर के जिम्मेदार दम्पत्ती को दल्हा देव एंव दुलहिन दाई के रूप में देवो का आव्हान कर श्रृंगार किया जाता है जिसमें शादी के समय मुकुट के रूप में आम के पत्ते में महुआ का फूल विशेष रूप से लगाया जाता है। जो अक्षय का प्रतीक होता है उक्त गोंगो अर्थात पूजन मंे तोरण लाल धु्रव एडीशनल सेल्स टैक्स कमिश्नर के के भतीजे शेखर धु्रव दुल्हा देव एंव उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कुंती धु्रव दुलहिन दाई के रूप मंे सम्पूर्ण गोंगो कार्यक्रम को सम्पन्न कराया। मांगलिक कार्यो में महापिण्ड महुआ के पत्ते , फूल ,नीबू , हल्दी ,चावंल का विशेष महत्व- गोड़ समाज की गायता अर्थात पूजारिन एंव संस्कृत की व्याख्याता श्रीमती सुशीला नेताम ने छ.ग. वाच ब्यूरो प्रमुख को बताया कि मांगलिक पूजा कार्य में 5 कलश जिसे गोड़ी भाषा में महापिण्ड कहा जाता है। महुआ के पत्ते और महुआ फूल का विशेष महत्व है। जिसमें कलश अर्थात महापिण्ड मानव शरीर के निर्माण 5 तत्व के प्रतीक है। महुआ वृक्ष को हम अक्षय वृक्ष मानते है। क्योकि जंगल मंें यह हमे प्राचानी काल में फूल के रूप मंें खाद्य समाग्री ,पत्ते का मांगलिक कार्य अर्थात गोंगो मंे उपयोग और लकड़ी बहु उपयोगी होती है। महुआ के पत्ते का दोना ,पत्तल अनादि काल से हिन्दू धर्म में भी सभी मांगलिक कार्यो में उपयोग किया जाता है। महुआ के पत्ते में चावंल हल्दी की ताजा गठान एंव फूल सात देव के प्रतीक होते है। गोंगो के पवित्र कथा में गोड़ जाति के धर्मगुरू पहदी पारी कुपार लिंगो के पहले धर्म को चलाने वाली माता – रायतार जंगो उनकी जन्म की कहानी गायता श्रीमती सुशीला नेताम ने बताई। गोगो अर्थात पूजन के पश्चात दुसरे गायता मदन लाल उइके एंव उनकी टीम ने बड़ा देव का भजन मादरी की मधुर थाप में बुलंद आवाज मंे गाकर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया।
सादगी और सात्विकता पर विशेष जोर- महिला गायता श्रीमती सुशीला नेताम ने बताया कि गांेगो के कार्य में फल फूल नैवेद्य का ही उपयोग किया जाता है खासतौर पर महुआ के मुरझाये फूल को पानी में भिगोकर दिया जाता है जो तरोताजा हो जाती है इसका जल देवो के पूजन अर्थात तरपनी के पवित्र कार्य में आता है। कोई भी फूल एक बार मुरझाये तों दुबारा तरांेताजा नही होता लेकिन महुआ का फूल कितना भी मुरझाया या सूखा हो जल में डालतंे ही तरोताजा हो जाता है। इसलिये हम इसे अक्षय फूल कहते है। हतारा जोर सात्विकता पर है गोंगो में पवित्र महुआ फूल के पानी का तरपनी में उपयोग किया जाता है। ना कि मदिरा या अन्य मादक पदार्थ की मंगल ध्वनि तुरही से की जाती है जो प्राचीन काल से मंगल कार्यो में उपयोग किया जाता रहा है।
गोंगो पश्चात सात्विक भोज का आयोजन- गृह प्रवेश अर्थात गोंगो के कार्य के पश्चात सात्विक भोजन खीर ,पूड़ी , चावंल दाल , का साकत्वक भोज का आयोजन किया गया था। उक्त कार्यक्रम में राधेश्याम धु्रव पूर्व जिला पंचायत सदस्य , धरम सिंह , राजेश श्रीवास जन सम्पर्क अधिकारी , श्रीमती मीरा श्रीवास , अमर सिंह , श्रीमती लता धु्रव , श्रीमती आशालता , रोशन लाल साहू , श्रीमती पद्मा धु्रव सहित ग्रामवासी बड़ी संख्या मंे उपस्थित थे।
अनादि काल से प्राकृति की देन अक्षयता का प्रतीक- गृह प्रवेश- दुल्हा देव एंव दुलहिन दाई को विधिवत पूजा अर्चना और ससम्मान स्थापित किया गया

