यामिनी चंद्राकर/ छूरा : अपनी एक सूत्रीय मांगों को लेकर सचिव संघ छुरा द्वारा अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ जाने के कारण पंचायतों का कार्य पूरी तरह से बंद पड़ा है सचिव संघ के प्रदेश व्यापी अभियान पर पूरा ब्लॉक के सचिव संघ द्वारा कृषि विभाग के सामने पंडाल लगाकर अपनी नियमितीकरण के मांगों को लेकर सचिवों ने अपना धरना प्रदर्शन 11 दिन भी जारी रखा सचिव के धरना प्रदर्शन व हड़ताल मैं चले जाने से ग्राम पंचायतों का कार्यों में पूरी तरह ब्रेक लग चुका है तो वही रोजगार सहायकों द्वारा भी अपनी नियमितीकरण को लेकर हड़ताल पर बैठ जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में शासन की महती योजना मनरेगा गौठान नरवा घुरवा वृद्धा पेंशन सहित शासन की जन कल्याण कारी योजना का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है सचिव संघ छूरा के अध्यक्ष क्रिष लाल सिन्हा ने बताया की यह हड़ताल तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार हमारी जायज मांगों को पूरा नहीं करता हमारे द्वारा शासन की हर योजना को ग्रामीणों तक पहुचाया जाता है कई वर्ष बीत चुके है हम पंचायत सचिवों को नियमितीकरण की मांग कर रहे है लेंकिन सरकार द्वारा वायदा कर के भी हमारा नियमितीकरण नही करने से क्षुब्ध होकर हड़ताल पर बैठना हमारी मजबूरी बन गई है। तो वही रोजगार सहायक संघ छुरा के अध्यक्ष मीरा कंवर ने कहा कि 14-15वर्षों से संविदा पर कार्यरत ग्राम रोजगार सहायकों को उनके सेवा के बदले सिर्फ 5000-6000 रुपये मानदेय दिया जाता है।जबकि मनरेगा के समस्त अधिकारी कर्मचारियों को वेतनमान दिया जाता है।जबकि रोजगार सहायकों द्वारा करवाये गए कार्यों के खर्च से मिलने वाली कन्टेंजेन्सी राशि से ही सभी अमले को वेतन मिलता है।अगर रोजगार सहायक मानव दिवस जनरेट कर खर्च नही करेंगे तो किसी भी कर्मचारी को वेतन नही दिया जा सकता।क्योंकि मनरेगा में इस निधि से मिलने वाले 6 प्रतिशत राशि से ही सभी स्तर के कर्मचारियों के लिए वेतन का प्रावधान है।तीन प्रमुख मांग वेतनमान निर्धारण नियमितीकरण। पंचायत सचिव पद पर शत प्रतिशत सीधी भर्ती।रोजगार सहायकों को सहायक सचिव घोषित करने। नगरीय निकाय में सम्मिलित ग्राम पंचायतों के रोजगार सहायकों को उसी निकाय में समायोजित करने,
छग है मनरेगा में विभिन्न श्रेणियों में अव्वल – मनरेगा प्रारंभ से लेकर आज दिनांक तक मनरेगा अंतर्गत छग हमेशा किसी न किसी श्रेणी में अव्वल रहता है।फिर चाहे 100 दिन या 150 दिन कार्य उपलब्ध करवाना हो,चाहे कोरोना काल मे रोजगार उपलब्ध करवाने में ही क्यों न हो।इसमें मैदानी स्तर पर ग्राम रोजगार सहायकों की मेहनत से ही सम्भव होता रहा है।