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बांस से बनी टोकरियों की अब प्लास्टिक का सामान ले रही जगह

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  • खलिहानों में भी नजर नहीं आ रहे बांस बनी सुपा, झउंहा 
कमलेश रजक/  मुंडा : बांस से बनी टोकरियों, सुपा, बाहरी, और झउंहा को इस बार खलिहानों में थोड़ी सी भी जगह नहीं मिली। अब ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर प्लास्टिक से बने सुपा, झउंहा, बाहरी उपयोग करने लगे है। सब्जियों को सुखाकर पूरे साल के लिए रखने की परंपरा तो कायम है लेकिन इनकी भी संख्या कम होने लगी है क्योंकि प्लास्टिक से बनी ऐसे सामान बांस से बनी सामाग्रियों को तेजी से बाहर का रास्ता दिखा रहे है। बांस शिल्प भले ही घरों के ड्राइंग रूम, होटल और रेस्टोरेंट में तेजी से जगह बना रहे है लेकिन बांस से बनी टोकरी, सुपा, झउंहा और पर्रा को खलिहानों तक में भी जगह नहीं मिल रही है। हर साल खरीफ फसल पर गुलजार रहने वाला यह बाजार अब सूना सूना नजर आता है। बेहद सीमित खरीदी के बाद इसे बनाने वाले हाथ इस काम से किनारा कर रहे है। क्योंकि पहले जैसा अब बांस भी नहीं मिलता है। सुपा, टुकनी और बाहरी का व्यापार करने वाले ने बताया कि पहले जैसा व्यवसाय नहीं रहा है। थोड़ी बहुत खरीदी बाहरी में बनी हुई है लेकिन इसके भी खरीददार कम होने लगे हैं। खलिहानों में उपयोग की जाने वाली टोकरी और झउहा तथा सुपा एक साल के उपयोग के बाद ही बुनाई छोड़ने लगती है। यही स्थिति सफाई के लिए काम आने वाली बाहरी के साथ भी है। बंधाई कमजोर होती है इसकी कड़िया बिखरने लगती है। हर जगह प्लास्टिक की सामाग्रियों को अवसर मिला बांस से बनी इन सामाग्रियों की कमजोरी का फायदा उठाया। प्लास्टिक और बांस से बनी सुपा, टोकनी, झउहा, पर्रा और बाहरी की कीमत में ज्यादा अंतर नहीं है। बांस से बना सुपा 125 से 150 रूपए में मिल रहा है तो प्लास्टिक का सुपा 90 से 120 रूपए में बेचा जा रहा है। बांस से बनी टोकरिया  80, 90 और 120 रूपए बेची जा रही है। इनकी जगह ले चूका प्लास्टिक का टब 120 से 150 रूपए में बेचा जा रहा है।
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