प्रांतीय वॉच

अचानक ठंड बढ़ने से कांकेर के नागरिक घबराए

Share this

अक्कू रिजवी/ कांकेर : कांकेर के बारे में मजाक में कहा जाता था कि यहां साढ़े ग्यारह महीने गर्मी तथा 15 दिन ठंड पड़ती है। काफी हद तक यह बात सही भी थी क्योंकि बरसों से लोग देख रहे थे कि कांकेर में नवंबर दिसंबर में भी ठंड नहीं पड़ती थी और बदली हमेशा रहने के कारण अजीब सा मौसम रहता था। क्रिसमस के दिन से 26 जनवरी के राष्ट्रीय पर्व तक कुल 1 माह जमकर ठंड पड़ती थी लेकिन अब विश्व भर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन से कांकेर जिला भी प्रभावित रहने लगा है और कभी भी अचानक बरसात, ठंड या भीषण गर्मी का अनुभव होने लगता है। किसी भी ऋतु या मौसम का कोई टाइम टेबल नहीं रह गया है। इस वर्ष अब तक ठंड का अता पता नहीं था लेकिन पिछले 3 दिनों से अचानक ही शीतलहर के साथ ठंड का ऐसा आक्रमण हुआ है कि पब्लिक सहम गई है।  इस प्रकार का ठंड का हमला कांकेर वासियों ने कभी नहीं देखा था ।यहाँ  तक कि रियासत के जमाने में जब 4 माह ठंड रहा करती थी ,तब भी ऐसी शीतलहर का अनुभव नहीं होता था, फिर भी जंगल के कारण ठंडक अधिक रहती थी और पुराने लोग गरीब जनता के लिए खास करके मजदूर वर्ग के लिए शहर के विभिन्न स्थानों में अलाव का इंतजाम कर देते थे जो कि इस नए जमाने में कोई नहीं करता। कायदे से यह कार्य नगर पालिका परिषद की ड्यूटी है लेकिन कांकेर नगर पालिका ने अब तक कोई कदम अलाव के इंतजाम के लिए नहीं उठाया है। रियासत कालीन पुराने कांकेर में राजापारा के नीम चौरा में राज परिवार तथा सेठ हबीब भाई द्वारा अलाव का प्रबंध ठंड भर प्रतिदिन किया जाता था दूध नदी की दूसरी तरफ सेठ चाँदनमल द्वारा अलाव का प्रबंध किया जाता था। राजापारा में सेठ हबीब भाई ने अपने जीवित रहते 1960 तक प्रतिवर्ष अलाव के लिए लोगों को भरपूर लकड़ी प्रदान की। तत्पश्चात पुराने बस स्टैंड में रिक्शा वालों कुली हमालो तथा मजदूरों के लिए स्वर्गीय श्री कृष्ण महाराज तथा स्वर्गीय गुलशेर भाई ने अपने अपने होटलों से वर्षों तक अलाव की लकड़ी का इंतजाम बिना किसी प्रचार के चुपचाप धर्मार्थ में किया । यह लोग अपने जमाने में दानवीर कहलाते थे, आज के सेठों के पास उपरोक्त दान वीरों से कई गुना ज्यादा धन है लेकिन धर्मार्थ में अलाव जलाने अथवा कोई भी जनहित कार्य करने का कलेजा नहीं है जो कि बहुत दुख की बात है। इस तरह कांकेर का दुर्भाग्य है कि ना तो नगर पालिका और प्रशासन ठंड में अलाव के लिए अपनी कोई जिम्मेदारी समझ रहा है और ना करोड़पति अरबपतियों को धर्मार्थ कोई कार्य करने की सुबुद्धि कहीं से मिल रही है। अभी जिस तरह की ठंड है, उससे लगता है कि यह फरवरी के अंत तक नहीं थमने वाली और शीतलहर का यही हाल रहा तो अनेक पशु पक्षी ही नहीं मनुष्य भी काल के ग्रास बन जाएंगे। प्रशासन तथा संपन्न नागरिकों को इस विषय पर भी कुछ सोच विचार चर्चा आदि करनी चाहिए।

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *