प्रांतीय वॉच

पांच साल में न तो टेउचिंग ग्राउंड तलाश सकें और न ही सुधरा सफाई सिस्टम, यहीं वजह की सर्वेक्षण में हर साल पिछड़ रहे हम

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तिलकराम मंडावी/ डोंगरगढ़। शहर में सफाई सिस्टम को दुरूस्त करनें न तो कवायद हो रही है और न ही व्यवस्था को सुधारनें के लिए पहल की जा रही। क्योंकि नगर पालिका के मौजूदा हालात गवाह है कि पालिका पांच वर्शो में न तो टेऊचिंग ग्राउंड तलाष पाई है और न ही सफाई व्यवस्था को सुधारनें गंभीर है। ऐसे में स्वच्छता की रैंकिंग में पिछडऩें का सवाल ही नहीं उठता। बेहतर सफाई व्यवस्था नहीं होनें व ठोस अपषिश्ट कचरों का निश्पादन नहीं होनें से ही सर्वेक्षण में हम पिछड़ रहे है। क्योंकि जब दिल्ली से टीम सफाई व्यवस्था का सर्वे करनें के लिए पहुंचनें वाली होती है तब ही सफाई कमांडो उतारकर दिखावा किया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा कर्मचारियों की बदौलत ही सफाई व्यवस्था को सुधार सकतें है। नगर पालिका में नियमित सफाई कर्मियों के अलावा प्लेसमेंट, दैनिक वेतनभोगी व महिला सफाई मित्र काम कर रहे। सबसें अधिक खर्च सफाई पर ही हो रहा है। कर्मचारियों की लंबी फौज होनें के बावजूद हर साल रैंकिंग में पिछडऩा चिंता का विशय है। स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछलें आंकड़ों को सुधारनें के लिए अतिरिक्त कर्मचारी लगाकर टीम के आनें तक महज दिखावा ही किया जाता है। महिला सफाई कमांडों को उतारकर सड़कों में झाड़ू लगानें से ही रैंकिंग में सुधार नहीं हो सकती। जबकि मौजूदा कर्मचारियों से ही काम लेकर सिस्टम को सुधारनें की जरूरत है। ठोस अपषिश्ट कचरों को डंप करनें के लिए व्यवस्थित टेऊचिंग ग्राउंड नहीं है। इसलिए जहां कहीं भी आउटर में कचरों को फेंका जा रहा है।
जानिए, मौजूदा संसाधनों से किस तरह हो सकता है बेहतर काम
डंपिंग यार्ड के लिए तत्काल तलाषनी होगी जमीन: षहर से निकलनें वालें कचरों को डंप या रिसाइकल करनें के लिए आउटर में सबसें पहलें ओपन टेऊचिंग ग्राउंड की तलाष करनी होगी। पांच साल पहलें निकाय सीमा से लगें ग्राम राजकट्टा व बछेराभांठा में जमीन चयनित की गई थी। लेकिन ग्रामीणों के विरोध के चलतें यह भी निरस्त करना पड़ा। जबकि वर्तमान में कचरों को जंगल की खाली पड़ी जमीन में ही डंप कर दिया जा रहा है। इससें जंगल तो प्रदूशित हो ही रहा है साथ ही मवेषी भी प्रभावित हो रहे है। कचरों का बेहतर निश्पादन नहीं हो रहा है। इसलिए सबसें पहलें ओपन टेऊचिंग ग्राउंड की तलाष जरूरी है।
सफाई कर्मियों में ही कसावट लाकर सुधारनी होगी व्यवस्था: नगर पालिका में नियमित सफाई कर्मियों के अलावा प्लेसमेंट, दैनिक वेतनभोगी व महिला सफाई मित्र कार्यरत है। नियमित व दैनिक वेतनभोगी कर्मी नाली सफाई के अलावा मुक्कड़ों से निकलनें वालें कचरों को खुलें ग्राउंड में ले जानें का काम करतें है। वहीं प्लेसमेंट के सफाईकर्मी तो नाममात्र ही है। क्योंकि इनमें से अधिकतर दफतर में काम कर रहे है तो कई अधिकारी-जनप्रतिनिधियों के बंगलों में अटैच है। ऐसे में सफाई व्यवस्था पर सुधार नहीं किया जा सकता। प्लेसमेंट के कर्मियों को मानदेय का भुगतान सफाई के नाम से हो रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे। वहीं स्वच्छता दीदी केवल डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण कर कबाड़ छांटनें का काम कर रही है।
कार्यों की नियमित मॉनीटरिंग व कबाड़ से जुगाड़ पर करना होगा काम: सफाई व्यवस्था को बेहतर करनें के लिए कर्मचारियों के कार्यों पर नियमित मॉनीटरिंग की जरूरत है। क्योंकि लगातार प्रभार बदलनें व राजनीतिक खींचतान के चलतें कर्मचारियों पर दबाव नहीं बन रहा। इसलिए कर्मी भी काम करनें में कोताही बरततें है। क्योंकि नगर पालिका में तीन वर्शों के भीतर राजनीति के चलतें स्वच्छता प्रभारी बदलतें रहे। वहीं मिषन क्लीन सिटी प्रोजेक्ट में भी यहीं हाल है। यहीं वजह है कि सफाई कर्मियों पर निगरानी नहीं होनें से ही मनमानी चल रही है। वार्डों से षिकायत आनें के बाद भी कई सप्ताह तक गंदगी पसरी रहती है। इसकेे अलावा कबाड़ से जुगाड़ यानी कचरों को रिसाइकल करनें का एक भी काम नहीं हो रहा है।
चिंता की बात: हर साल रैंकिंग में पिछड़ रहे हम- नगर पालिका डोंगरगढ़ एक समय में स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग में प्रदेष के साथ-साथ देष के टॉप पालिकाओं में षामिल था। लेकिन तीन वर्शों से टॉप-10 तो दूर टॉप-80 के बाद ही स्थान मिल रहा है। यानी सफाई सिस्टम में लगातार लापरवाही के चलतें ही हमारी रैंकिंग फिसल रही है। चिंता की बात तो यह है कि मौजूदा हालात को सुधारनें के लिए न तो अफसर गंभीर है और न ही जनप्रतिनिधि कवायद कर रहे। हां, यह जरूर है कि कर्मचारियों को इधर-उधर करनें व अपनें लोगों को काम देने में राजनीति जरूर चल रही है। ऐसी ही स्थिति रही तो षहर में सफाई सिस्टम बेहाल हो जाएगा।

सीधी बात: सुदेष मेश्राम, अध्यक्ष नपा डोंगरगढ़

  • क्या वजह है कि अब तक पालिका टेऊचिंग ग्राउंड नहीं तलाष पाई है?
    इसकी जानकारी मुझें तो नहीं है। मैं इंजीनियर से पता करता हूं।
  • मौजूदा संसाधन पर्याप्त होनें के बावजूद सफाई सिस्टम सुधर नहीं पा रहा?
    हमारें कर्मचारी बेहतर काम कर रहे है। पब्लिक की भी षिकायत सफाई को लेकर नहीं है। संसाधनों का पूरा उपयोग कर रहे है।
  • स्वच्छता रैंकिंग में लगातार पिछडऩा क्या हमारें लिए चिंता की बात नहीं है?
  • यह चिंता का विशय तो है। लेकिन मौजूदा हालातों में और सुधार करतें हुए व्यवस्था को बेहतर बनानें के लिए काम करेंगे। रैंकिंग को सुधारनें के लिए मंथन किया जाएगा।
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