- सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि शराब की दुकानें चाहे वा देसी हों या विदेशी राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर से अधिक दूरी पर होनी चाहिए
कांकेर : छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के कुछ अधिकारी आए दिन बेलगाम होते जा रहे हैं और अनियमितताओं के साथ भ्रष्टाचार करते हुए इस हद तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्हें सुप्रीम कोर्ट की भी परवाह नहीं रहती । उत्तर बस्तर कांकेर जिले में इसका ज्वलंत उदाहरण चारामा की शराब दुकान में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है । सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि शराब की दुकानें चाहे वे देसी हों या विदेशी राष्ट्रीय मार्ग राजमार्ग से 500 मीटर से अधिक दूरी पर होनी चाहिए। इससे कम दूरी पर शराब दुकान खोलने की अनुमति किसी को भी किसी शर्त में नहीं होगी लेकिन चारामा में इस नियम की अधिकारियों ने धज्जियां उड़ा दी हैं और साबित कर दिया है कि उनकी अफसरी के आगे सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं है। यहां सड़क से नापने पर शराब दुकान की दूरी मात्र 400 मीटर निकलती है, जिससे सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भंग होता है और अवमानना का मामला बनता है। मजे की बात यह है कि यहां शराब दुकान खोलने पर किसी भी विभाग के किसी अधिकारी को कोई एतराज नहीं हुआ बल्कि सबने लगभग सभी ने आंखें मूंदकर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट पर दस्तखत मार दिए हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि इसके पीछे किसी नेता का हाथ है जिसकी धमकी चमकी से अथवा प्रलोभन से सारे विभागों के अफसर डरे हुए हैं और किसी का स्वर आपत्ति में नहीं उठ रहा है। यह तो हुई ठोस तथ्य की बात , यह भी सुना गया है कि जिस भूमि पर शराब दुकान स्थापित है वह कृषि भूमि है और उसका डायवर्सन आबादी भूमि में नहीं हुआ है । यह भी एक कड़ा नियम है कि सरकारी विभाग को उसी भूमि को किराए पर लेना चाहिए जो विवाद ग्रस्त ना हो तथा यदि वह कृषि भूमि रही हो तो उसका आबादी प्लाट में डायवर्सन हो चुका हो अन्यथा सरकारी विभाग ऐसी जमीन को किराए पर नहीं लेते हैं । यदि लेते हैं तो ऊपर से ऑडिट अथवा अन्य प्रकार की आपत्तियां आ सकती हैं । यदि ऐसा है तो चारामा के मामले में आबकारी साहब दोहरी परेशानी में पड़ सकते हैं। खासकर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना वाले मामले में तो आबकारी साहब अपने साथ-साथ उन नौ अधिकारियों को भी ले डूबेंगे , जिन्होंने 400 मीटर की दूरी पर शराब दुकान खोलने में कोई आपत्ति नहीं प्रकट करते हुए अपने अपने हस्ताक्षर ठोक दिए हैं।