- बहुमूल्य सागौन प्लांटेशन को वन विभाग ने किया चोरों के हवाले,सागौन का हो रहा सफाया
अनीश सोलंकी/ देवभोग : वन विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही के मामले अधिकांशत: सामने आते ही रहते है। वन विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही उनकी कार्यप्रणाली को संदेहात्मक बनाती है। जिसके चलते क्षेत्र में वनों की कटाई पर रोक नहींं लगा पाती है। दरअसल इसी लापरवाही के कारण ही वनों की कटाई पर अंकुश नहीं लग पाता है और विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को बदनामी का दंश झेलना पड़ता है।गरियाबंद जिले में आये दिन हरे भरे वृक्षों को काटा जा रहा है। प्राय: देखा गया है कि वन विभाग अपनी की टीम अपनी अधिकांश कार्यवाही में केवल ठूंठ पर हेमवर मारकर ही इतिश्री कर लेता है जिसके चलते वृक्ष की कटाई निरंतर जारी है।बता दे कि गरियाबंद वन मंडल अंतर्गत वनपरिक्षेत्र मैनपुर (सामान्य)वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 1078 झरिया बाहरा जिसका सफल सागौन वृक्षा रोपण कार्य सन 1961 में लगभग 34.390 हेक्टयर वन भूमि पर किया गया था जंहा अच्छी क्वालिटी के सागौन के वृक्ष रोपे गए थे जो अब बड़े होकर बहुमूल्य पेड़ बन चुके है।जिन्हें वन विभाग ने अब चोरो के हवाले कर दिया हैं जिन पर लकड़ी चोरी करने वालों की नजर जमीं रहती है।लेकिन वन विभाग की उदासीनता के चलते अब यहा प्लांटेशन पर अब लकड़ी चोरो का राज है मौके पर इस बहुमूल्य वन संपति का जमकर दोहन हो रहा है और वनविभाग भरपूर अमला तैनात है इस प्लांटेशन से सड़क के किनारे ही जब सागौन की इतनी अवैध कटाई हो रही हो तो जंगल के अंदर कितनी कटाई हो रही होगी? यह कल्पना की जा सकती है।बीट क्रमांक 1078की नर्सरी में अब जगह – जगह ठूंठ दिखाई देने लगे है। वनविभाग के लापरवाह अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा अनदेखी की जा रही है।चोरो द्वारा के पेड़ चोरी कर ले जा चुके है और इसकी भनक तक विभाग को नही लग पाई है इतना ही नही नर्सरी के अंदर ही चोरो द्वारा हांथ आरा से पल्ले बनाने का काम बेधड़क चल रहा इससे प्रतीत होता हैं कि वन अमला ने ही इन चोरो को खुली छूट दे रखी है और यहाँ स्पष्ट होता है कि वन विभाग ने यह बेसकीमती सागौन प्लांटेशन अब चोरो के हवाले कर दिया है। जिससे वनों में सागौन का तेजी से सफाया होता जा रहा है।ज्ञात हो कि झरिया बाहरा प्लांटेशन में हरे-भरे सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है। लेकिन अवैध कटाई पर वन विभाग अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पुनः ज्ञात हो कि क्रमांक 1078 मे सुनियोजित तरीके से सागौन तस्करों के द्वारा लगातार सागौन की तस्करी करने का मामला सामने आया है लेकिन वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी अभी भी इस मामले से बेखबर है जिसका फायदा सागौन तस्करों के द्वारा खुलेआम उठाया जा रहा है। मुख्यालय मैनपुर से महज 10 किमी के दायरे में जंगल क्षेत्र लगातार अवैध कटाई के चलते सिमटते जा रहा है जिसे लेकर वन विभाग मौन है और कार्यवाही किये जाने की बात भी कर रहे है। नेशनल हाईवे रायपुर देवभोग पक्की सड़क मार्ग से लगे हुए सागौन के प्लांटेशन से लगातार प्रायोजित तरीके वन तस्करों के द्वारा खुलेआम बेशकीमती सागौन वृक्षों की अधिक मात्रा मे अवैध कटाई कर तस्करी किया जाने लगा है जिसकी कटाई हाँथ आरा मे किया गया चिरान, बेखौफ होकर बनाया गया जंगल के बीचो बीच चोरो को ठहरने के स्थान बना हुआ जिससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि खुलेआम तस्करों के द्वारा बाहरी व्यक्तियों को बेचे जाने के शंका को नकारा नही जा सकता।और ना वन विभाग के कर्मियों की मिलीभगत को भी नही नकारा जा सकता ,पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने वन विभाग असफल दिख रहा है यूं कहें कि वन विभाग अवैध कटाई व वन तस्करों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहा है कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पक्की सड़क मार्ग के समीप सुगम कच्ची रास्ते एवं वनोपज जांच नाका झरियाबाहरा और वन विभाग द्वारा निगरानी के लिये बनाये गये वाॅच टावर के पीछे जंगलो में खुलेआम सागौन वृक्षों की कटाई आरा से चिराई एकाएक होने से मामला गंभीर लगता है और सवाल खड़े करता है कि पक्की सड़क किनारे खुलेआम लगातार वन तस्करों के द्वारा अवैध कटाई को अंजाम दिया जा रहा है लेकिन यहा तैनात फारेस्ट गार्ड, चैकीदार और डिप्टी रेंजर के द्वारा रोकथाम क्यों नहीं की गई और वह भी वन विभाग के ठीक नाक के नीचे अवैध कटाई सागौन ठूंठ के निशान तस्करों के साथ मिलीभगत होने की ओर ईशारा कर रहा है। जैसे भी हो खुलेआम सागौन वृक्षों की कटाई होने का भरपाई नहीं किया जा सकता लेकिन मैदानी अमले के वन कर्मचारियों के द्वारा शुरुआती दौर में ही सघन जांच-पड़ताल किए जानेे से बेशकिमती सागौन वृक्षों का दूर्दशा नहीं होता और खुलेआम वन तस्करों के द्वारा सागौन लकड़ी को चोरी नहीं किया जाता। लाखों रुपयों की क्षति छत्तीसगढ़ वन विभाग का हुआ है जिसका भरपाई करना मुश्किल है। ज्ञात हो कि वन तस्करों के द्वारा सुनियोजित तरीके से सागौन के विशाल पेड़ों को कुल्हाड़ी से गाडलिंग करके सूखने के बाद कटाई करते हुए लकडियों के गोला को जंगलों में ही छुपाते है फिर आरा से चिरान तैयार करके बखूबी से तस्करी किया जाता है। देखने मे ऐसा प्रतीत हो रहा है पक्की सड़क के किनारे का हाल बेहाल है तो बाकि जंगलों में क्या स्थिति होता होगा इस बात से आसानी से समझा जा सकता है जिसका क्षेत्र में अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रियाएं हो रही है। इस तरह के खेल एक-दो दिनों में नहीं हो सकता महीनों से अवैध कटाई का सिलसिला जारी रहा तो वन विभाग के जिम्मेदार मैदानी इलाके के कर्मचारियों को भनक क्यों नहीं लगी?और वह भी मुख्य मार्ग के नजदीक के जंगल में जो की विभाग कुभकर्ण की निंन्द्रासन मे है ऐसे में अवैध रूप से पेड़ों की कटाई का जिम्मेदारी कौन लेगा समझना आसान नहीं है लेकिन लगातार क्षेत्रों में वन तस्करों के द्वारा अवैध तरीके से बेशकीमती सागौन वृक्षों की कटाई किए जाने का मामला पर रोक लगाने में फिलहाल वन विभाग पिछड़ता नजर आ रहा है।या यूं कहें कि वनों के प्रति वन विभाग के अधिकारियों की इक्षाशक्ति ही खत्म हो गई हैं।अवैध कटाई की जानकारी विभाग के आला अधिकारयों को भी है लेकिन उनके द्वारा कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति किया जाता रहा है। बरसों पहले वन सुरक्षा समितियों में लाखों रुपए की राशि होता था उस समय वन सुरक्षा समितियों की पूछ परख वन विभाग के द्वारा किया जाता रहा लेकिन अब ऐसा नहीं दिखता समय रहते वन विभाग के मैदानी अमले के अधिकारी कर्मचारियों को पैनी नजर रखते हुए सागौन प्लान्टेशन पर चाक-चैबंद व्यवस्था पर ध्यान दिया जाना नितांत आवश्यक है ताकि समय रहते वनों का विनाश रूक सके और जिसके कारण लाखों रुपए की बहुमूल्य प्रजाति सागौन के पेड़ों की कटाई कर उसकी चोरी रुक सके है। बता दे कि वन परिक्षेत्र मैनपुर(सामान्य) के क्षेत्रों में पेड़ों की अवैध कटाई का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
यहां चोर आरी और कुल्हाड़ी से पेड़ों की कटाई करते हैं। इसके बाद उसका आसानी से परिवहन भी कर देते हैं। विडम्बना यह है कि दिन-रात जंगलों की सुरक्षा करने में लगे वन अमले को न तो पेड़ों की कटाई की गूंज सुनाई देती है और न ही उनके परिवहन की भनक लग पाती है।
दिन-रात हो रही कटाई जंगलों में चोर दिन-रात से पेड़ों की अवैध कटाई कर रहे है। बावजूद इसके अवैध कटाई की जानकारी वन विभाग को नहीं लग पा रही है। विरले होते जा रहे वन इधर, पेड़ों की अवैध और अंधाधुंध कटाई से सागौन की प्लान्टेशन का सघन जंगल विरला होते जा रहा है।और शासन को लाखों का चूना लग रहा हैं लेकिन वन विभाग अवैध कटाई को रोक नहीं पा रहा है। पेड़ बचाने के लिए वन विभाग कागजो मे लाखों रुपए खर्च कर रहा है, लेकिन पहले तो पेड़ चोरी-छिपे पेड़ काटे जा रहे थे लेकिन यहां काम खुलेआम चल रहा हैं। वन विभाग की खानापूर्ति के कारण पेड़ काटे जाने की जानकारी भी अधिकारियों को नहीं हो पाती है।वन परिक्षेत्र मैनपुर में बचे-खुचे जंगलों को काटकर लोग नष्ट कर रहे हैं। धीरे-धीरे लोग पूरा जंगल ही काटकर ले जाएंगे, लेकिन विभाग को पता तक नहीं चलेगा। दरअसल विभाग के द्वारा जंगलों की निगरानी ही नहीं की जा रही है। विभाग की लापरवाही से जंंगल नष्ट हो रहे हैं।
अवैध पेड़ कटाई से उजडते वन आखिर जिम्मेदार कौन..?
गरियाबंद जिला अंतर्गत अवैध पेड़ कटाई से वनों का उजडऩा आज भी बदस्तूर जारी है वनों का विलुप्त होना ये कोई नई बात नही बल्कि ये सिलसिला अविभाजित मध्यप्रदेश प्रदेश के समय से चला आ रहा है विडंबना ही है कि जिन लोगों पर वनों की सुरक्षा का भार सौपा जाता रहा है वही लोग वनों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते रहे है। इसका प्रमाण प्रदेश के जंगलों को देख कर लगाया जा सकता है।अगर यह कहा जाए कि प्रदेश के वन चोरों और वन जीवोँ के तस्करों के हवाले है तो यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी।आखिर सरकार और उसके नुमाइंदे वनों के महत्व को क्यो नजरंदाज कर रहे है।वे उनकी सुरक्षा व्यवस्था के प्रति इतने लापरवाह क्यों है.? ज्ञात हो कि प्राचीन काल से ही वन मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखते थे। यह मानव जीवन के लिए प्रकृति के अनुपम उपहार हैं। हमारे वन पेड़-पौधे ही नहीं अपितु अनेकों उपयोगी जीव-जंतुओं व औषधियों का भंडार हैं। इतना ही नही वन पृथ्वी पर जीवन के लिए अनिवार्य तत्व हैं यह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में पूर्णतया सहायक होते है। यह भी ज्ञात हो कि प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वजों, ऋषियो-मुनियों व संतो के लिए वन तपोभूमि रही है और इन्ही वनों में महान ऋ षियोँ के आश्रम भी रहे जहा वे अपने शिष्यों के साथ निवासरत रहते थे।और इन ऋषियोँ का समाज मे विशेष स्थान था जिन्हें लोग बड़ी श्रद्धा एवं विश्वास से देखते थे। लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि जंगल के अधिकारियों ने वनों को चोरो ओर तस्करों के हाथों मानो बेच दिया हो। लेकिन यहाँ जिन ‘हरा सोना अर्थात सागौन के परिपक्व पेड़ो की कटाई की जा रही है उसकेे कटे हुए ठूठ में ना हैैमर है और ना ही कोई नंबर, इससे साफ जाहिर होता है कि वनोंं की सुरक्षा में तैनात अधिकारी ने वनों को तस्करोंं के हवाले कर दिया हैं। आखिर ऐसे गैरजिम्मेदार अधिकारियों से भला जंगल की सुरक्षा कैसे संभव है। इतना ही नही जंगलों की सुरक्षा में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा वनों की सुरक्षा में लापरवाही का ही परिणाम है कि जंगलों में परिपक्व सागौन वृक्ष पर बिना हैमर व नंबर के गोला व ठूठ का पाया जाना अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह होने की तरफ इंगित करता है और वन विभाग को सवालों के कटघरे खड़ा करने के लिये पर्याप्त है।वनपरिक्षेत्र मैनपुर में बेशकीमती सागौन के परिपक्व वृक्षों की अवैध कटाई चोरो द्वारा बेधड़क की जा रही है इतना ही नही यहां वनों की सुरक्षा के लिए रेंज अफसर, डिप्टी रेंजर, बीट गार्ड और चौकीदार मौजूद है, किन्तु ग्रामीणों के कथनानुसार वन विभाग के कोई भी अधिकारी यहाँ जंगलों में सुरक्षा गश्त के लिये आते ही नही, इसलिए दिन व रात में सागौन के तस्कर आरी लेकर पेड़ को काटकर ले जाते है इतना ही नही ग्रामीणों ने तो यहां तक कहा कि रात की बात तो छोडिये दिन में यहाँ अधिकारी नही आते है ऐसा लगता है कि ये जंगल की कटाई अधिकारी और तस्करों के मेलजोल का ही परिणाम है। अत: वन विभाग के जंगलों में इन दिनों इमरती लकडिय़ों की जो तस्करी दिनदहाड़े अवैध कटाई के रूप में की जा रही है। ये काफी शर्मनाक है इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। इतना ही नही वन विभाग के अधिकारी मौड़े पर जाकर मुआयना करने के बजाय मामले को रफादफा करने के लिए ‘पत्रकार’ को रिश्वत देने की कोशिश करते है ऐसी ही एक कोशिश हमारे संवाददाता से मैनपुर में पदस्थ कर्मचारी ने भी की थी, और ये भी रोना रोया था कि जब हम कुछ गाडिय़ों को पकड़ते है तो मीडिया वाले उस बारे में नही लिखते है लेकिन जब कोई छोटी सी बात हो जाती है तो वे उसी के पीछे पड़ जाते है, आखिर सरकार हमे अपनी इफाजत के लिए रायफ़ल जैसे कोई साधन तो देती नही है हमें अपनी सुरक्षा मात्र डंडे से करनी पड़ती है यह बात तो उक्त कर्मचारी ने सही कहा है। लेकिन क्या वे नही जानते कि जब कभी ऐसा मौके आये तो पुलिस उनकी सहायता के लिए हर वक्त मौजूद है लेकिन ये पुलिस की मदद ही लेना नही चाहते।संवाददाता से साफ-साफ कहा है कि 500-1000 रुपये के लिये आप लोग ऐसा क्यों करते हो, आप मुझसे आ के मिलो,आखिर कर्मचारी के इस कथन का क्या मतलब निकाला जाए। जो पत्रकार की कीमत 500 से 1000 रुपये लगा रहा हो तो वो अपने वरिष्ठ अधिकारियों की कीमत भी तय कर चुका होगा।बता दे कि वन अधिकारी द्वारा उडऩदस्ता टीम बनाकर वाहनों से जंगलों के सुरक्षा की बात तो कही जा रही है। लेकिन फिर भी जंगल से सागौन जैसे इमारती लकडिय़ों की आरे से अवैध कटाई भी हो रही है। इसका मतलब यह है कि उडऩदस्ता का गश्तीदल जंगलों की सुरक्षा में नाकाम साबित हो रहा है या फिर तस्करों से हाथ मिला चुका है। यह भी अजीब विडंबना ही है वनों के विनाश का भी संभवत: वन विभाग के अधिकारियों द्वारा ही हो रहा है। इतना ही नही सागौन के परिपक्व पेड़ों की अवैध कटाई को रेंजर की करतूतों छिपाने अब जिम्मेदार अधिकारी बचते नजर आ रहा हैं। अगर ग्रामीणों की बातों पर गौर करे तो अधिकारी अपने कर्तव्य के प्रति सजग़ नही है वे सरकार की आँखों मे धूल झोंक कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है। ज्ञात हो कि लकड़ी चोरो व तस्करों द्वारा दिन के उजाले में ये लोग सागौन के मोटे और सीधे परिपक्व पेड़ों पर निशान लगा कर चले जाते है और रात के अंधेरे में निशान लगे पेड़ो को काट ले जाते है लकड़ी तस्करो का यह कार्य निरन्तर चलता रहता है। और अधिकारियों द्वारा जंगलों के निरीक्षण ना किया जाना उनके हौसले बुलंद कर रहा है।दूसरी और अधिकारी जांच की बात कह रहे है विडंबना ही है जब जँगल कट गया उसके बाद जाँच करवायेंगे। यह तो वही बात हुई ‘साँप के चले जाने के बाद लकीर पीटना वाली कहावत को ही चरितार्थ करने जैसा है। बहरहाल वन परिक्षेत्र मैनपुर सामान्य के कक्ष क्रमांक 1078 के जंगल में ना जाने ऐसे कितने परिपक्व सागौन जैसे वेशकीमती इमारती पेड़ो की बलि चड़ा दी गई है अब जरूरत है गरियाबंद और रायपुर में बैठे अधिकारियों को एक-एक बीट कंपार्टमेंट की सूक्ष्मता से जाँच करवानी चाहिये ताकि जंगल और जंगली जानवरों के अवैध तस्करों से बचाव किया जा सके। क्योंकि जंगलों की सुरक्षा सरकार का दायित्व है।
वर्षों से हो रही पेड़ों की अबैध कटाई अधिकारी लगे रहते हैं बजट के जुगाड़ में
वर्षों से हो रही अवैध कटाई पर वन विभाग का मौन रहना आश्चर्यजनक है। एक ओर तो कृषक वन भूमि पर कटाई कर अवैध कब्जा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर लकड़ी तस्कर इमारती लकड़ी विशेषकर वेशकीमती सागौन की लकड़ी की अवैध कटाई कर उसे चोर चोरी छुपे फर्नीचर बनाकर बेचने में निरंतर बेखौफ लगे हैं। यह भी सही हैं कि अवैध कटाई से लेकर फर्नीचर के निर्माण व बिक्री का पूरा कार्य खुलेआम चल रहा है। फिर भी वन विभाग के अधिकारियों का आंख मूंदकर बैठना यह साबित करता है कि जंगलों की अवैध कटाई वन विभाग की सरपरस्ती पर खुलेआम चल रही है। जंगलों के संरक्षण संवर्धन तथा वनों की सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्य सरकार प्रतिवर्ष क्षेत्र में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है किंतु पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने में वन विभाग पूरी तरह असफल रहा है या यूं कहें कि वन विभाग अवैध कटाई व वन तस्करों के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।हालांकि वन मंण्डलाधिकारी मंयक अग्रवाल उपवन मंण्डलाधिकारी अतुल श्रीवास्तव , वन परिक्षेत्र अधिकारियों को दिशा निर्देश दिये हुये हैं कि जिला के पूरे वन परिक्षेत्र का निरीक्षण करने एंव कटाई पेंडो की गिनती अतिक्रमण प्रकरण पर कडी कार्यावाही करने का निर्देश जारी कर चुके हैं लेकिन जिसमे अपने कार्यालय के ऐ.सी. रूम से निकलकर अपने दर्जनों वन विभाग के जवानों के साथ जंगल के चप्पे चप्पे का बारिकी से निरीक्षण किया जाये साथ ही मंयक अग्रवाल ने लगातार अपने अधिनस्थ वन कर्मचारियों को लगातार वनों की सुरक्षा एंव अतिक्रमण से बचाव के लिए कडे दिशानिर्देश समय समय पर देते आ रहे है लेकिन वन परिक्षेत्र अधिकारी अनिल साहू मैनपुर (सामान्य)जैसा अधिकारी अपने कथित मित्रो व स्थानीय नेताओं के साथ बैठाकर कॉफ़ी की चुस्कियां लेते रहते हैं कैम्पा जैसी योजनाओं में तालाब खनन हेतु व भवन निर्माण के लिये ईंट रेत व मैटेरियल सप्लाई,सी पी टी खनन कार्य, का टेंडर देता है व कथित नेताओं के साथ दिनभर अपने निवास में टाइम पास करते है अपने को राजपत्रित अधिकारी होने का हवाला देते है बात दे कि
डीएफओ गरियाबंद द्वारा वन अपराध नहीं करने के लिए गांववालों से बैठकर चर्चा करते है समाझाईश देते हुये वनो के विनाश से ग्रामीणों को भविष्य मे होने वाले दुष्प्रभाव से अवगत कराते है, वनपरिक्षेत्र अधिकारी अनिल साहू को इस बात की खबर ही नही होती कि इनके वन क्षेत्र में वेशकीमती सागौन प्लांटेशन पर चोरो का राज चल रहा है और बो सिर्फ आने बाले बजट का बंदरबांट करने के बारे में सोचते है ऐसे लापरवाह वन परिक्षेत्र अधिकारी के चलते ना तो वनों की रक्षा हो सकती है।
वन सुरक्षा समितियां हैं पंगु
शासन ने पर्यावरण को बढ़ावा देने वनों की सुरक्षा करने गांव-गांव में वन सुरक्षा समितियों का गठन भी किया है जो वनों की सुरक्षा के साथ साथ पर्यावरण जागरूकता के लिए भी कार्य करती हैं किंतु यहां तो वन सुरक्षा समिति सिर्फ कागजों में बनी हुई है। इसलिए वनों की सुरक्षा ताक पर है और वन तस्कर खुलेआम शासन के नियमों की धज्जियां उड़ाकर सागौन के पेड़ो को काट कर चोरी कर रहे हैं। जब हमने क्षेत्र का पैदल भ्रमण किया तो दर्जनों तादाद में सागौन के पेड़ों की कटाई दिखाई दी।
क्या कहते है वन अफसर
वन परिक्षेत्र अधिकारी वन परिक्षेत्र मैनपुर अनिल साहू ने बताया कि सूचना मिलते ही वन अमला स्थल निरीक्षण के लिये मौके पर पहुंची है जहां वर्तमान में केवल एक ठूंठ मिला है जो 7 से 8 दिन का है टीम द्वारा कक्ष क्रमांक 1077, 1078 में सघन जांच किया जा रहा है अगर ऐसा है तो उचित कार्यवाही किया जायेगा।
इस सम्बंध में वन मंडल अधिकारी मयंक अग्रवाल से चर्चा करने पर पुलिस की तरह सवाल करते नजर आये कि आपने पेड़ गिना क्या? और कितने पेड़ कटे हैं।कब आप वन परिक्षेत्र मैनपुर गए थे ?अंत मे कहा जांच करने के बाद आपको बता देँगे।