मैनपुर : सामाजिक कार्यकर्ता रूपसिंग साहू ने वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती पर नमन करते हुए कहा कि उनके शौर्य पराक्रम की गाथाएं बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देगी दुर्गा का रूप लिए साहस शौर्य की वह मूरत थी मुगलों को पराभूत कराती देवी कि वह सूरत थी रणभूमि में मुगलो को छठी का दूध याद दिला देने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती पर कोटि कोटि नमन आपके शौर्य पराक्रम की गाथाए बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देगी रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 में प्रसिद्ध राजपूत चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में हुआ इनका जन्म चंदेल राजवंश के क कालिजर किले में जो कि वर्तमान में बांदा उत्तरप्रदेश में स्थित है में हुआ इनके पिता चंदेल वंश के सबसे बड़े शासक थे ये मुख्य रूप से कुछ बातों के लिए बहुत प्रसिद्ध थे यह उन भारतीय शासकों में से एक थे जिन्होंने महमूद गजनी को युद्ध में खदेड़ा रानी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी को हुआ इसलिए इनका नाम दुर्गावती रखा गया है इनके नाम की तरह है इनका तेज साहस शौर्य और सुंदरता चारों ओर प्रसिद्ध थी। रानी दुर्गावती मुगल सेना से युद्ध करते हुए बहुत ही बुरी तरीका से घायल हो चुकी थीं 24 जून सन 1524 को लड़ाई के दौरान एक तीर उनके कान के पास से होते हुए निकला और एक तीर ने उनके गर्दन को छेद दिया और वे होश खोने लगी उस समय उनको लगने लगा कि अब वो ये लड़ाई नहीं जीत सकती उनके एक सलाहकार ने उन्हें युद्ध छोड़ सुरक्षित स्थान पर जाने का सलहा दिया किन्तु उन्होंने जाने से मना कर दिया और उससे कहा दुश्मनों के हाथ से मरने से अच्छा है खुद को समाप्त कर लो रानी ने अपने ही एक सैनिक से कहा कि तुम मुझे खत्म कर दो किंतु उस सैनिक ने अपने मालकिन को मारना सही नहीं समझा इसलिए उन्होंने रानी को मारने से मना कर दिया तब रानी ने अपने ही तलवार अपने सीने में मार ली और उनकी मृत्यु हो गई इस दिन को वर्तमान में *बलिदान दिवस* के नाम से जाना जाता है
सामाजिक कार्यकर्ता रूपसिंग साहू ने रानी दुर्गावती की जयंती पर किया नमन
