रायपुर वॉच

भारत में कोई भी संस्था या व्यक्ति या पद संविधान से ऊपर नहीं, हम सब संविधान के दायरे में रहकर अपना  काम करते हैं : भूपेश बघेल

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  • मुख्यमंत्री  की पत्रकारवार्ता के प्रमुख बिन्दू

रायपुर : भारत में कोई भी संस्था या व्यक्ति या पद संविधान से ऊपर नहीं, हम सब संविधान के बनाए और बताए हुए दायरे में रहकर अपना अपना काम करते हैं चाहे वह संसद हो या राज्य विधान मंडल, कानून बनाने की शक्ति संविधान ने कुछ खास विषयों और सीमाओं के अंतर्गत प्रदान की है। अनुच्छेद 246 से लगी हुई सातवीं अनुसूची में तीन सूचियां दी गई हैं, जिन पर संसद और विधान मंडल कानून बना सकते हैं। संविधान द्वारा बनाई गई संघीय ढांचे की व्यवस्था में सूची एक अर्थात संघ सूची में दिए गए विषयों पर कुल 97 प्रविष्टियां हैं जिन पर केंद्र कानून बनाता है ।इसी तरह सूची दो में बताए गए कुल 66 विषयों पर राज्य विधान मंडल कानून बना सकते हैं। तीसरी अर्थात समवर्ती सूची में दिखाए गए 47 विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन विरोध की सीमा तक ऐसे मामलों में केंद्र का कानून लागू होगा। जहां तक कृषि संबंधी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार है संघ सूची में एक भी विषय ऐसा नहीं है जिसके अंतर्गत एकमेव रूप से कृषि से संबंधित मामलों पर केंद्र को कोई कानून बनाने का अधिकार है।

राज्य सूची की प्रविष्टि 14, 18 ,30 ,46, 47, 48 में कृषि से संबंधित अनेक विषय ऐसे हैं जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को ही है।
रही समवर्ती सूची की बात तो उसमें प्रविष्टि 6 कृषि भूमि से भिन्न संपत्ति का अंतरण ,अभिलेखों और दस्तावेजों का रजिस्ट्री कराने तथा प्रविष्टि 33 में खाद्य पदार्थ जिनके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तिल पशुओं के चारे जिसके अंतर्गत खली और अन्य चारे हैं ,कच्ची कपास, कच्चा जूट का व्यापार वाणिज्य, प्रोसेसिंग, प्रदाय और वितरण इतना भर संसद द्वारा विनियमित किया जा सकता है।
अब आइए देखें कि अध्यादेश का स्थान लेने वाले और संसद द्वारा पारित विधेयकों में दिए गए प्रावधानों के अनुसार किन किन विषयों का स्पर्श होता है। पहली नजर में पाएंगे आप कि कृषि कर्म, उसका उत्पादन ,कृषि उपज का प्रसंस्करण ,उसका विपणन सभी कुछ इस कानून द्वारा कवर किया जा रहा है ।
ऐसे में विचार किया जाएगा कि जिन विषयों पर संसद को कानून बनाने की शक्ति ही नहीं है उन विषयों पर केंद्र कैसे तो अध्यादेश जारी कर सकता है? कैसे इन अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करने वाले विधेयक संसद के सदनों द्वारा पारित किए जा सकते हैं और किस प्राधिकार के अंतर्गत राष्ट्रपति उन्हें अपनी मंजूरी देकर पूरे देश में लागू करा सकते हैं। सारा मामला अधिकारातीत कार्यवाही का है ।अर्थात जिस विषय पर कानून बनाने का और उसे लागू करने का अधिकार संसद को नहीं है उस विषय पर भी प्रक्रिया नियमों को शिथिल करके कानून बनाना कहां तक तर्कसंगत और संविधान सम्मत है।
*तीनों विधायकों के संबंध में संसद के प्राधिकार और वैधानिक सक्षमता का परीक्षण करा कर राजनीतिक और विधिक कार्यवाही की जा सकती है।

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