- बच्चों की पढ़ाई जरूरी है लेकिन उनकी सेहत सबसे अहम
- कोरोना संक्रमण के चलते उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात में फिलहाल स्कूल बंद ही रहेंगे
नई दिल्ली: अगर सबकुछ ठीक रहा तो 21 सितंबर से देश के कुछ राज्यों में स्कूल खुल जाएंगे। शुरुआत में कक्षा 9 से 12 तक के स्टूडेंट्स को ही स्कूल आने की परमिशन होगी। उसके लिए भी पैरेंट्स की लिखित अनुमति अनिवार्य है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, झारखंड जैसे राज्य जहां 21 तारीख से स्कूल खोलने की तैयारी में हैं। वहीं, कोरोना संक्रमण के चलते उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात में फिलहाल स्कूल बंद ही रहेंगे। केंद्र सरकार ने बकायदा स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर जारी किया है जिसमें कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए कई इंतजाम करने के निर्देश हैं। इसके बावजूद, पैरेंट्स के मन में शंका है। वह उधेड़बुन में हैं कि बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं। बच्चों की पढ़ाई जरूरी है लेकिन उनकी सेहत सबसे अहम है। ऐसे में कुछ बातें हैं जो पैरेंट्स को टेंशन दे रही हैं। पैरेंट्स की सबसे बड़ी टेंशन ये है कि क्या स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन हो पाएगी। गाइडलाइंस में क्लास से लेकर लैब्स व अन्य जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग सुनश्चित करने के निर्देश हैं। मगर धरातल पर इतना कितना पालन होगा, इसे लेकर पैरेंट्स थोड़े शंकित हैं। नवभारत टाइम्स के ऑनलाइन्स पोल में हिस्सा लेने वाले 72 पर्सेंट पैरेंट्स ने कहा कि वे अपने बच्चों को इस वक्त स्कूल नहीं भेजेंगे। इसके पीछे डर कोरोना संक्रमण का ही है। बड़ी संख्या में बच्चे बसों के जरिए स्कूल पहुंचते हैं। गाइडलाइंस कहती हैं कि बसों को रेगुलरली सैनिटाइज किया जाना है। मगर पैरेंट्स सशंकित हैं कि बस के जरिए संक्रमण फैलने की संभावना ज्यादा है। एक अभिभावक ने नवभारत टाइम्स से बातचीत में कहा, दिल्ली में अधिकांश मामले बिना लक्षणों वाले हैं। ऐसे में स्कूल जाने वाले हर शिक्षक या छात्र का पता कैसे चल सकता है और स्कूल बसों का क्या बहुत सारे मुद्दे हैं। स्वास्थ्य सबसे पहले हैं उसके बाद कुछ और आता है। बालमन बेहद चंचल होता है। बच्चे शैतानियां करते ही हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण के बीच बच्चों को स्कूल भेजने से पैरंट्स कतरा रहे हैं। इसकी एक वजह ऊपर तस्वीर में आप देख सकते हैं। कायदे से मास्क को किसी भी हालत में नहीं छूना है। मगर बच्चे किस हद तक इसका ध्यान रख पाएंगे, यह बड़ी टेंशन है। दूसरी बात ये कि अगर आपका बच्चा सारे नियम फॉलो करता है तो जरूरी नहीं कि दूसरा भी करे। ऐसे में संक्रमण फैलने की चिंता पैरेंट्स को है।
लंच टाइम में कैसे होगा कंट्रोल स्कूल में लंच टाइम के दौरान बच्चे खूब घुलते-मिलते हैं। एक-दूसरे से टिफिन साझा करते हैं, साथ खेलते हैं। मगर कोरोना के चलते ऐसा करने पर पूरी तरह रोक है। सरकार ने कहा है कि स्टूडेंट्स के बीच किसी भी तरह के स्टेशनरी आइटम, वॉटर बॉटल या लंच बॉक्स शेयर करने की अनुमति नहीं होगी। मगर बच्चे इसका कितना ध्यान रख पाएंगे, पैरेंट्स इसे लेकर टेंशन में हैं। कोरोना के अधिकतर केस एसिम्प्टोमेटिक हैं यानी संक्रमित व्यक्ति में बीमारी के लक्षण नहीं दिखते। ऐसे में स्क्रीनिंग का कोई खास मतलब नहीं रह जाता। अगर किसी एक बच्चे को भी कोरोना हुआ और वो एसिम्प्टोमेटिक हुआ तो पूरे स्कूल में संक्रमण का खतरा है। एनबीटी से बातचीत में सुबीर ठाकर ने कहा, अगर एक भी छात्र के साथ कुछ होता है, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा मुझे लगता है कि स्कूलों को पहले हमें विस्तार से बताना चाहिए कि वे क्या सावधानी बरत रहे हैं ताकि हमें यह तय करने में आसानी हो। अगर स्कूल से संक्रमित होकर कोई बच्चा घर लौटता है तो उसके घरवालों में भी कोरोना फैल जाएगा। पैरेंट्स के लिए यह एक बड़ा सिरदर्द है।