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इस प्रकार होते है अपराजिता के हैं कई जादुई गुण

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अपराजिता लता वाला औषधीय पौधा है। कहा जाता है कि जब इस वनस्पति का रोगों पर प्रयोग किया जाता है तो यह हमेशा सफल होती है और अपराजित नहीं होती। इसलिए इसे अपराजिता कहा गया है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये इकहरे फूलों वाली बेल भी होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं – नीले और सफेद। भगवान शिव, श्रीकृष्ण और शनिदेव को ये विशेष रूप से पसंद हैं।  इसे  भगपुष्पी और  योनिपुष्पी का नाम दिया गया है। इसका उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेष रूप में किया जाता है।

आयुर्वेद में इसे विष्णुक्रांता, गोकर्णी आदि नामों से जाना जाता है। संस्कृत में इसे आस्फोता, विष्णुकांता, विष्णुप्रिया, गिरीकर्णी, अश्वखुरा कहते हैं जबकि हिन्दी में कोयल और अपराजिता। बंगाली में भी अपराजिता, मराठी में गोकर्णी, काजली, काली, पग्ली सुपली आदि कहा जाता है। गुजराती में चोली गरणी, काली गरणी कहा जाता है। तेलुगु में नीलंगटुना दिटेन और अंग्रेजी में मेजरीन कहा जाता है। आयुर्वेद में सफेद और नीले रंग के फूलों  वालों अपराजिता के वृक्ष को बहुत ही गुणकारी बताया गया है। अपराजिता का प्रयोग बहुत सी बीमारियों के उपचार में किया जाता है। इसकी सफेद फूल वाली प्रजाति में ज्यादा गुण पाए जाते हैं।

औषधीय गुण-

– अपराजिता  के बीज सिर दर्द को दूर करने वाले होते हैं। दोनों ही प्रकार की अपराजिता बुद्धि बढ़ाने वाली, वात, पित्त, कफ को दूर करनी वाली है।  अधकपारी या माइग्रेन के दर्द में अपराजिता की फली का प्रयोग किया जाता है।

-आंखों से जुड़ी सभी बीमारियों का उपचार

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के लिए  सफेद अपराजिता तथा पुनर्नवा की जड़ के  चूर्ण का इस्तेमाल किया जाता है।

– कान दर्द में अपराजिता के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है।

-दांत दर्द में अपराजिता की जड़ और काली मिर्च के पेस्ट को मुंह में रखने से आराम मिलता है।

–  गला खराब होने यानी आवाज में बदलाव आने पर भी अपराजिता के पत्ते के काढ़े का सेवन  उपयोगी बताया गया है।

– सफेद फूल  वाले अपराजिता की जड़ की पेस्ट में घी अथवा गोमूत्र मिलाकर सेवन करने से गले के रोग (गलगण्ड) में लाभ होता है।

इसके अलावा पेट की जलन, गले के दर्द, खांसी,   सांसों के रोगों की दिक्कत और बालकों की कुक्कुर खांसी  जलोदर (पेट में पानी भरने की समस्या), अफारा (पेट की गैस), कामला (पीलिया), तथा पेट दर्द , गठिया, तिल्ली विकार (प्लीहा वृद्धि), अफारा (पेट की गैस) तथा पेशाब के रास्ते में होने वाली जलन, फाइलेरिया या हाथीपांव आदि रोगों के उपचार में भी अपराजिता के पत्तों, जड़ और फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। (इसका इस्तेमाल करने से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।)

 

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